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________________ २५० अमर सेणचरिउ सुज्जोउ जो होंतु गरिट्ठउ । सो तहु णंदणु जाउ मणिउ ॥७॥ मूढ सुईणा सो [] वृत्तउ । राणउ रिसि हुउ चित्ति विरत ॥८॥ रज्जु कुलंकरु करइ सइत्तउ । मूढ सुईस समं संजुत्तउ ॥ ९ ॥ एव दिवस सिरिदामा पिट्ठी । दोहिमि जारासत्ती - दिट्ठी ॥१०॥ ते उवसमेवि परिट्टिय जामहि । तो णिस्सारिय ताइं जि तामहि ॥११॥ तिरिय - गइ हि ते बहु भव इंडिवि । दुह जियणें अप्पाणउ दंडि वि ॥ १२॥ | पुणु राय - गिहहि दियवर णंदण | संजाया तस तत्थ परिवखण ॥ १३ ॥ जेट्टहं णामु विणोद पयासिउ | लहुयहं रमणु पउत्तु जजासिउ ॥ १४ ॥ घत्ता लहु गउ वि विएसहे, भूरि किले सहि, तत्थ पढि वि पुणु आयउ । वाहिर मढि थक्क, णिसिंह गुरुक्कर, ता विणोवहो भज्ज तहिं ॥ ७-३ ॥ [ ७-४ ] आइय जारातत्ती अणिट्ठ | पर पुरिस - रमण लंपडिय दुट्ठ ॥१॥ णाहुवि पत्तउणहि पिट्टि लग्गु । धारि वि रिसकर उक्खाय खग्गु ॥२॥ सा पहिय पासि ठिय मुणि वि जारु । ता णिह णिउं केण ण किउ वियारु ॥३॥ मारि वि भासइ अविवेय एण । सइरणि मंदिर णिय पाविण ॥४॥ सा पुणु मारिउ तह विह खलाई । परिभमिय तिरियगइ - संकलाई ॥५॥ ॥ पुणु मियं जाया विणि वि वणम्मि । भिल्लि मारिय हरिणि खणम्मि || ६ || तिमि बंधि वि घरि णोय तेण । पालिय-लालिय तिहं भिल्लएण ॥७॥ संभूइ - णिवइ एक्कहि दिणेण । भिल्लिउ-परिगिव्हिय कीलणेण ॥ ८॥ वंधिय देवच्चण-भवण- पासि । ता रमणे किय तहं सह पयासि ||९|| जिग-पया रुइ भावेण जुत्तु । मरिऊण सग्ग भवणम्मि पत्तु ॥ १०॥ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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