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________________ २४८ अमरसेणचरिउ [७-२] भरहहु अवलोयवि सो करीसु । हूवउ खणेण साजाइ जिईसु ॥॥ तहु उवसंतहो भिडिउ स सोयउ । भरहु सरि सरुव्व सविणीयउ ॥२॥ जा उज्झाउरि मज्झि सुपइट्ठउ । हरि-हलिणा अणुराएँ दिट्ठउ ॥३॥ करि-आलाण खंभि बंधेप्पिणु । ठिय जा साहरि समोउवहेप्पिणु ॥४॥ ता मिट्टेण सिरि रामहु वुत्तउ । गासु-तोउ णिव करिणा चत्तउ ॥५॥ वासर-तिण्णि-जाय-उववासें । इय भासंतहु दुक्ख-पयासे ॥६॥ ता अण्णे के रामहु भासिउ । जेण चित्ति आणंदु-पयासिउ ॥७॥ देसविहूसणु णामें केवलि । तउ पुण्णेण आउ णिरसिय-कलि ॥८॥ रामु सलपखणु-भरहु सभक्तिए । झत्ति गया ते वंदणहत्तिए ॥९॥ वंदिवि केवलि-धम्मु सुणेप्पिणु । पुणु पुच्छिउ अवसरु पावेप्पिणु ॥१०॥ करिणा-कवलु पाणु किं कारणु । चत्तउ सामिय सुक्ख-णिवारणु ॥११॥ घत्ता ता परम-जईसरु, [ राय-दोस-विणु ] आसिएत्थु रिसहि सहु । आणा-पालणयर, विण्णि वि किंकर, दिक्खिय ते तहिं तेण सहु ॥७-२॥ [७-३] सुज्जोदय-चंदोदय मूढहिं । पुणु तउच्छंडिउ रायारूढहिं ॥१॥ अदृझाणि अवसाणि मरेप्पिणु । तियस जोणि वहु भेय भमेप्पिणु ॥२॥ कुलजंगल-गयवरह पहाणउं । हरपति णामें जायउ ताणउ ॥३॥ भज्ज-मणोहरीहि गभहि हुउ । चंदोदउ भमे वि सुह गुण जुउ ॥४॥ जय-पसिद्ध णामेण कुलंकरु । सिरिदामा भज्जहि हियइ-हरु ॥५॥ विस्सतासु तहो रायहु मंत्ती । तिय सिहिकंडी णिम्मल-कंती ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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