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________________ पंचम परिच्छेद २२५ हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार चारों वर्ग की-कहने में सरल कथा रूपी अमतरस से परिपूर्ण श्री पंडित माणिक्क-कवि द्वारा साधु महणा के पुत्र देवराज चौधरी के लिए रचे गये महाराज श्री अमरसेन के इस चरित्र में अमरसेनवइरसेन का प्रवज्याग्रहण, महाराज देवसेन की वन्दना, भक्ति और उनसे जिन-पूजा एवं धर्म-फल श्रवण-वर्णन करनेवाला यह पाँचवाँ परिच्छेद पूर्ण हुआ ।। सन्धि ।। ५ ।। सौन्दर्य रूपी अमृत से शरीरवान्, सौभाग्यशाली, लक्ष्मीवान्, मोतियों के हार और फूले हुए काँस के समान शुभ्र यश से दिशाओं रूपी मुख को श्वेत ( उज्ज्वल ) रखनेवाला, वीर-जिनेन्द्र द्वारा भाषित कथा-आलाप सुनने में लीन कर्णवाला साधु महणा का देवराज नाम का विद्वान् पुत्र सदा आनन्दित रहे ।। इति-आशीर्वाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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