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________________ ५-२१॥ २२० अमरसेणचरिउ पुर-वाहिर गिरि-तरि आइ थक्कु । तस्सुत्तु सुणि वि भत्ति गुरुक्कु ॥१५॥ गउ परियणेण जुउ पुहइ-राउ । तें भत्तिए वंदिउ वीयराउ ॥१६॥ पुणु धम्माहम्महो तणिय वत्त । सुहदाइणि वहु दुहरासि चत्त ॥१७॥ छह-दव्व-पयत्थई सत्त-तच्च । भासियई सउच्चइ सह वि सच्च ॥१८॥ आ अच्छइ पहुता सुरह-राउ । देवीउ-विण्णि सम-सरणि आउ ॥१९॥ जिणु णविवि पइट्ठाइद वि पासु । तहं णिय वि णरेसहु जा उहासु ॥२०॥ घत्ता पुच्छइ जिणदेवहु, वियलिय लेवहो, सामिय महु मणि अच्चरिउ । वड्ढइ कहि बच्छिउ, एह उपच्छिउ, अच्छर-जुयलउ सुहरिउ ॥५-२१ ॥ [५-२२] किं पुत्त-मित्त-घर दंदु तत्थ । जं णायउ सुखइ-णाह सत्थ ॥१॥ जिण चवइ राय अहणा वि जाय। ते कारणेण पच्छद समाय ॥२॥ तं सुणि जं पुण्णे सग्गि हूव । सव्वहं जणाहं आणंदु हव ॥३॥ इह पुर वरि मालायारियस्स । पुत्तीउ विण्णी जायउहियस्स ॥४॥ कुसुमावलि-कुसुमलया हि हाणु । अण्णोण्ण-णेहु पालण-विहाण ॥५॥ कुसमाइं वि लेप्पिणु पडि दिणंम्मि । पिउ डल्लउ-परि वि पुर-वरम्मि ॥६॥ आवंतहो मग्गि परिट्ठियस्स । सिहरंविय जिपवर-मंदिरस्स ॥७॥ देहलिहि वि एक्केक्कउ वि फुल्ल । धरिऊण पणामे सहं जवल्ल ॥८॥ जय-जय सरु पडिदिणु भणि वि जाहिं । केतडउ कालु जा एम थाहिं ॥९॥ घत्ता ता अण्णहि वासरि, पिय डल्लउ करि, कुसुमत्थे भूरुह-सघणे । पियरह आणा वस, कोऊ हल-रस, ताउग्गय दाडिमिहिं खणि ॥ ५-२२॥ [५-२३ ] तहं कुसुम-विणंतहं कुसुम-एक्कु । लय-मज्झि दिठ्ठ फुल्लिउ-गुरुक्कु ॥१॥ अहमवि-अहमवि गिण्ह वि भणेवि । जिण-देहलि अच्चहि एक्क णेवि ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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