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________________ १९२ अमर से रिउ तं सह भुजइ णिहि [णिव ] णिरुत्तु | अक्त्वंति जिणेसरु णाणणेत्तु ॥ २२ ॥ तहं दुज्जण पाउ, धत्ता पर-संताउ, सुग्रणच्छिद्द जोवइ कुमई । अहो उ जोवइ, सुयण-वि गोवइ, वज्झइ णरयहं दुहह Jain Education International गई ॥ ५५ ॥ [ ५-६ ] वहु विजयं सावत्तिय मार्याह । खम्माविय णाणा सुह- वार्याह ॥ १ ॥ पुणु ते डाविय णिव कोड-वावार । जिण्डु मरणकाल मुक्किय कुमार ॥२॥ गुणुमणि पसंसिय देस-दिण्ण । दिय देव वत्थ सव्वह खण्ण ॥३॥ पुर-वाहिर दिण्णई धरणि सण्ण । णिय वण्णें भासिय जे विवरण ॥४॥ इत्थंतरि कुमरइ सुहि रमंत । धम्मत्थ- काम भुजंत संत ॥५॥ जिर्णाधिव अकित्तिम कित्तिमाई | वंदहि णह- गइ - पावलि-पसाई ॥ ६ ॥ णियसेण सहिय वण- करहि कील । जल-सरवर वायहि करहि कील ॥७॥ अण्णह दिण सोयर वे वि सुहि । यि घर- गवक्ख विट्ठई जुवेहिं ॥८॥ आवंत दिट्ठ हि मुणि जयलु । चरियहं णियह निमित्त रयणत्त घलु ॥९॥ अवयण्णइं पुर-सायार दीहि । परिगाहिय भोयणु दिष्णु तहिं ॥ १०॥ गय अक्खय- दाणु दइ गइय ते वि । सुर-र-णाइंदई णमहि ते वि ॥११॥ उत्तिण रहिय णिव उववर्णामि । तं वंदिय पुरयण थुइव - रयमि ॥१२॥ पुणु दिट्ठ कुमारह भउ सरेवि । पुव्वहं भवाई इणु समु णिएवि ॥ १३ ॥ विवहारिय घर सम्भावियाई । भुजाविय भोयणु अप्पु भाई ॥ १४ ॥ धणंकर- पुण्णंकर कम्मर | इव वंदहि मुणिवर असुहहर ॥१५॥ हम कहहि पुन्व भउ दिव्विझुणि । [ कम्म] णास जुत्तइ पयउ जणि ॥१६॥ तह गयइ सपरियण जुत्त भाय । वंदिय मुणि जुयलइ चच्चि पाय ॥१७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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