________________
तृतीय परिच्छेद [ ३-१]
ध्रुवक एवहिं भासमि सारु, जिहं विओउ विहि भाय भउ।
णिसुणहि मागहराय, सावहाणु हो एवि सउ॥छ॥ तहं वइरसेणि वहु-विह-पयार । गुरु वहं पय-सेवइ णिव्वियार ॥१॥ तो दव्वह[हि]विलसइ सुच्छचित्त । संपाडइ षडरस-भोजु णित्त ॥२॥ भुजावइ भार्याह करि वि भत्ति । जं उयरहं णासइ भुक्ख-अत्ति ॥३॥ पहिरहि देवंगई वत्थ णित्त । जायण-जण पोसहिं दाण भत्त ॥४॥ तहि अवसरि वुज्झइ अमरसेणि । भो सुणहि वाय महु वइरसेणि ॥५॥ कहि लब्भय संपइ गुणणसेणि । जं पोसहि णिय कर होण-दीण ॥६॥ तो णिसुणि भणई तह वइरसेणि । जिणधम्म-भत्तु पुण्णहणसेणि ॥७॥ सुणि वंधव जव पहु हमह रुठु। मारण पट्ठाए चंड दुटु ॥८॥ तहं परियण-णरवइ-रायकीय । अंतरि पवेसु महु दिण्णु तीय ॥९॥ दोणार सत्त पच्छण्ण करि । मइ रक्खिय निय भंडार धरि ॥१०॥ तं लेवि आउ भो भाय सुहि । विलसउ सुह संपइ कम्म सुहि ॥११॥ तहि अवसरि सत्तम दिण कुमार । गय कंचणपुर रणि दुण्णिवार ॥१२॥ णिव-णंदणवण ओयरिय जाय। जहं कूवा-सरवर-सुच्छ-वाय ॥१३॥ वहु तरवर सहियउ पक्खि-रम्मु । फल-फुल्ल सुयंधहं अलिहिरम्मु ॥१४॥ कीरहिं णर-णारिय रहसचित्त । णिय कंतु रंजावहि कमल-वत्त ॥१५॥ तहं कोइल सद्दइ जणहं रम्मु । हरि झुल्लहि तरुवर-साहरम्मु ॥१६॥
घत्ता तहं उववणि, पहतिय-मणि,
गउ कंचणपुर विमलमई । वइसेणिकुमारु, णिज्जिय-मारु,,
भोयणत्थ सामग्गि लई ॥३-१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org