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________________ संपादकीय समता की गंगोत्री, करुणा की अजस्र धारा शासन ज्योति परम पूज्या गुरुवर्या श्री मनोहर श्री जी म.सा. के प्रवचनों का संकलन जन-मानस तक पहुंचाने में मैं अत्यन्त आत्मविभोर हो रही हूँ । जिनकी वाणी में अमृतपान कराने की क्षमता है, जिनके कंठ में परमात्मा की भक्ति का मिठास है, जब बोलती है तो मां सरस्वती फूट पड़ती है, प्रभु भक्ति में गाती है तो प्रभु दीवानी मीरा का स्मरण होता है, मुख से हृदय स्पर्शी वाणी निकलती है जो लोगों के हृदय को स्पर्श किये बिना नहीं रहती - वो है मनभर मनोहर श्री जी म.सा. । पू. गुरुवर्या श्री जी के प्रवचन केवल जैन समाज को ही नहीं अपितु अजैनों के लिए भी उपयोगी हैं। इनके प्रवचनों में सम्प्रदाय वाद की कोई झलक नहीं दिखती बल्कि समन्वय का आह्वान है। गुरुवर्या श्री जी के प्रवचन बहुत ही सरल एवं सहज है । जन-मानस सरलता से समझ सकता है। काफ़ी समय से लोगों की भावना थी कि गुरुवर्या श्री के प्रवचनों का संकलन पुस्तिकारूढ़ किया जायें जिसका आम जनता रसास्वादन कर सकें। गुरुवर्या श्री की वाणी को पुस्तिकारूढ़ करना मेरी शक्ति से बाहर है फिर भी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैने यह कार्य हाथ में लिया। संकलन एवं सम्पादन का मेरा यह प्रथम प्रयास है। गुरु कृपा से कलम हाथ में लेकर दुस्साहस कर रही हूँ । शासन उत्कर्षिणी परम श्रद्धेया गुरुवर्या श्री मनोहर श्री जी म.सा. मम जीवन उद्धारिका एवं संयम दात्री है। उन पूज्या श्री के चरणों में मैने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया है। उनके लिए शाब्दिक कृतज्ञता प्रगट करना मामूली बात है। उनका मंगल आशीर्वाद ही मेरे जीवन का पथ है। इस आशीर्वाद के उपलक्ष में उनके हर इंगित आदेशों को साकार रूप दे सकूं यही गुरुदेव से मंगल कामना करती हूँ। यही उनके प्रति कृतज्ञता होगी ! Jain Education InternationBrivate & Personal Use Only.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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