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॥ प्रथमो बिमर्शः॥ दारुणं तीदणमश्लेषा मूलमार्मा महेन्जम् । ऋरमुग्रं च जरणी तिस्त्रः पूर्वा मघान्विताः॥३५॥ मिश्रं साधारणं च विशाखाकृत्तिकानिधे।
नाम्नोचिते धिष्ण्ये निर्मितं कर्म शर्मणे ॥ ३६॥ अर्थ-स्वाति, पुनर्वसु अने श्रवणादि त्रण एटले श्रवण, धनिष्ठा अने शतनिषक ए पांच नक्षत्रो चर तथा चल कहेवाय जे. हस्त, अश्विनी, अन्निजित् अने पुष्य र चार नक्षत्रो लघु तथा हिप कहेवाय बे. मृगशिर, चित्रा, अनुराधा अने रेवती ए चार नक्षत्रो मृउ तथा मैत्र कहेवाय जे. रोहिणी, त्रण उत्तरा एटले उत्तराफाटगुनी, उत्तराषाढा अने उत्तरालाप्रपद ए चार नक्षत्रो ध्रुव अने स्थिर कहेवाय जे. अश्लेषा, मूळ, आर्म श्रने ज्येष्ठा ए चार दारुण तथा तीक्ष्ण कहेवाय . जरणी, मघा, त्रण पूर्वा एटले पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा अने पूर्वानाप्रपद ए पांच नक्षत्रो क्रूर तथा उग्र कहेवाय . तथा विशाखा अने कृत्तिका ए बे नत्रो मिश्र तथा साधारण कहेवाय . अर्थात् था बे नक्षत्रो स्थिर, चळ, तीक्ष्ण तथा मृड विगेरे कांश पण कहेवातां नथी. श्रा चर विगेरे नामे करीने उचित एवा नक्षत्रमा करेलुं कार्य सुखने माटे थाय , एटले के जेवु नक्षत्रनुं नाम होय तेवू कार्य तेवां नक्षत्रोमां करवाथी कार्यनी सिद्धि थाय . ३३-३५-३५-३६.
श्रा चरादिक नक्षत्रोमां केवां कार्य करवा योग्य ते ज कहे .कुर्यात्प्रयाणं लघुनिश्चरैश्च मृध्रुवैः शान्तिकमाजिमुत्रैः।
व्याधिप्रतीकारमुशन्ति तीक्ष्णैर्मित्रैश्च मिश्रं विधिमामनन्ति ॥३॥ अर्थ-लघु तथा चर नत्रमा प्रयाण, करीयाणां, अलंकार, कळा, मैथुन, औषध, ज्ञान, विज्ञान, वाहन, उद्यान विगेरे संबंधी कार्य करवामां आवे . मृउ तथा ध्रुव नक्ष
मां शांति, बीज, घर, नगर, अनिषेक, वाग बगीचा, जूषण (अलंकार ) वस्त्र, गीत, मंगळ तथा त्रि विगेरे संबंधी कार्य तथा स्थिर कार्य करवामां आवे . उग्र नक्षत्रमा खमाइ, वंचना (बेतरतुं ते ), विष, घात, बंधन, नन्छेदन, शस्त्र अने अग्नि विगेरे संबंधी कार्य करवाा आवे बे. तीक्ष्ण नदत्रमा व्याधिनो प्रतीकार ( दवा विगेरे उपाय ), नूत, यक्ष, मंत्र अनं निधिनी साधना तथा लेदकर्म विगेरे संबंधी कार्य करवामां आवे बे. तथा मिश्र नक्षत्रमा मिश्र कार्य एटले सुवर्ण, रूपुं, तांबू, लोढुं विगेरे सर्व अग्निकर्म तथा वृषोत्सर्ग अने अग्निनो परिग्रह विगेरे कार्य करवामां आवे . दिनशुद्धि ग्रंथमां का ये के-"खहूचरे सुहारंजो जग्गरिके तवं चरे । धुवे पुरपवेसाई मिस्से संधिकियं करे ॥१॥" "लघु अने घर नक्षत्रमा शुन कार्यनो श्रारंज करवो, उग्र नक्षत्रमा तप थाचरवो,
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