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________________ ॥ श्रारंसिद्धि॥ वर्ण इत्युक्तं ब्रह्मयामले ॥१॥" "जो नामनो पहेलो वर्ण संयोगअक्षरवाळो होय तो तेनो पहेलो अदर स्वर सहित ग्रहण करवो. एम ब्रह्मयामलमां कडं .” वळी श्रनुस्वार तथा विसर्ग श्रदरोमां कां पण विकार कर्ता नथी, तेथी ते दरेक अक्षर साथे लइ शकाय . ( बाळचंज, बिहारीलाल विगेरे नामोमां) ब अकरने व जेवो जाणवो, केमके ब अने व ए बे अक्षरोनी ऐक्यता कहेली . च वर्गना पांचमा श्रदर अकारने क वर्गना पांचमा श्रदर डकार जेवो गणवो. थहीं कोश्ने शंका थाय के कोइ पण नामना प्रारंनमा डञ के ण श्रावता नथी, तेथी ते अक्षरो शामाटे अहीं लीधा ? तेनो जवाब ए जे जे पूर्वना श्राचार्याए ए श्रदरो सीधा , माटे अहीं पण तेने गणाव्या बे. वसी श्रा अक्षरो गणाव्यानुं कां पण फळ नथी एम धारवू नहीं, केमके एकाशी पदोषाळा सर्वतो मना चक्रमांथा श्रझरोवमे ग्रहनो वेध थाय ने त्यारे ते ते ग्रहना पादवाळाने शरीर पीमा थाय ने एg तेनुं फळ कहेलुं बे. सर्वतोज चक्रना विवरणमां कडं बे के-"विध्यन्ते घडडा रौजे पणा हस्तगे व्यधेः। फढधाः प्रागषाढायामाहिबुन्ने तु शाकथाः॥१॥" "आर्षा नक्षत्रमा घ, ङ अने ब ए त्रण अक्षरोनो वेध थाय बे, हस्तमां ष, ण भने उनो वेध श्राय बे, पूर्वाषाढामां फ, ढ अने धनो वेध थाय , तथा उत्तरानाषपदमां श, जाने भए त्रण अक्षरोनो वेध कहेवाय ." २३-२४-२५-२६२७-२०-२ए. हवे अन्निजित् नक्षत्रनुं स्वरूप बतावे जे.उत्तराषाढमन्त्यांहि चतस्त्रश्च श्रुतेर्घटीः। वदन्त्य निजितो नोगं वेधलत्ताद्यवेक्षणे ॥ ३० ॥ अर्थ-उत्तराषाढानो बेधो एटले चोयो पाद अने श्रवण नक्षत्रनी पहेली चार घमी, थाटला काळने अनिजित् नक्षत्र कहे . श्रा नक्षत्र वेध, लत्ता, उत्पात विगेरे जोवामां उपयोगी ले. अहीं उत्तराषाढानो बेहो पाद कह्यो जे ते सामान्य रीते पंदर मीनो होय जे, परंतु जो उत्तराषाढा नक्षत्रनो नोगकाळ साठ घमीश्री न्यूयाधिक होय ते कुख घमीना चोथा नागने चोथो पाद गणवो. “वेध, लत्ता विगेरे जोवामां श्र. अजिजितनो उपयोग " एम कहेवाश्री अन्य स्थळे तेनो उपयोग करवानो नथी ए अर्थातथी जाणी खेवू तथा वेध, खत्ता विगेरे जोती वखते अनिजितनी पंदर घमी (अथवा तेथी न्यूनाधिक घमी (काढी सश्ने बाकी जेटली घमी रहे तेटली घमीन उत्तराषाढा गणी तेना पाद कटपवा. ए ज रीते श्रवणमांथी पण अनिजितनी चार घमी कढी बाकी रदेखी धमीटनुं श्रवण गणी तेना पाद कहपवा. ३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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