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________________ प्रश्न सो विमर्शः॥ १ए हवे वारनां नामो तथा तेमनुं फल कहे जेरविचन्ऽमंगलयुधा गुरुशुक्रशनैश्चराश्च दिनबाराः। रविकुजशनयः क्रूराः सौम्याश्चान्ये पदोनफलाः ॥ १६ ॥ अर्थ-रवि, सोम, मंगळ, बुध, गुरु, शुक्र अने शनि ए सात वार ले. तेमां रवि, मंगल अने शनि ए त्रण वार क्रूर ने अने बाकीना चार वार सौम्य वे. श्रा सर्वे वारो शुनाशुन फळ थापनारा बे. एटले के वीश वसानी अपेक्षाए पंदर वसा जेटलुं फळ आपे बे. क्रूर वारमा करेलुं कार्य पंदर वसा अशुन्न फळ श्रापे , अने सौम्ा वारमा करेलु कार्य पंदर वसा शुन फळ आपे . कह्यु के- "रविमन्दारवारेषु यस्मिन् संक्रमते रविः। तस्मिन्मासि लयं विद्या निक्षावृष्टितस्करैः ॥" "रवि, शनि के मंगळवारे जो सूर्यनी संक्रांति थ होय तो ते मासमां मुकाळ, अनावृष्टि तथा चोरादिकनो जय थाय ने एम जाणवू;" परंतु आत्रण वारोनी क्रूरता जेटली दिवसे गणाय ने तेटली रात्रिए गणाती नथी. कह्यु ले के-"न वारदोषाः प्रनवन्ति रात्रौ" "राए वारना दोष समर्थ थता नथी.” वारोने विषे था प्रमाणे कार्यो करवानां कह्यां ने.- ज्याभिषेक, नोकरी, विचार, शस्त्र, औषध, विद्या, संग्राम, प्रयाण, सुवर्ण, तांबु, उन, लंकार, शिल्प ( कारीगरी), पुण्यकर्म तथा उत्सवादिक कार्यों रविवारे करवायी थाय . रू', गायन, नोजन, खेती तथा वेपार विगेरे कार्यों सोमवारे करवाथी सिद्ध थाय ने. सर्व क्रूर कर्म, रक्तस्राव, सुवर्ण, परवाळा, खाण, धातु, सेना निवेशादिक कार्यो मंगलवारे करवाथी सिख थाय बे. अदर शीखवा, कान विंधवा, कविता करवी, कसरत करवी, तर्क करवो, वाद विवाद करवो तथा कळाल्यास ए विगेरे कार्यो बुधवारे रिच थाय . सर्वे शुन्न मांगलिक कार्य, दीक्षा, विद्या, यात्रा, औषध विगेरे गुरुवारे सिंघ श्राय . दीक्षाने वर्जीने वुध अने गुरुमां कहेला सर्व कार्यो शुक्रवारे सिद्ध थाय , प्रने दीक्षा, घरप्रवेश, घरनो थारंन विगेरे स्थिर कार्य तथा क्रूर कार्य शनिवारे करवाथी से थाय के. एम कडं ठे, सामान्य रीते कहीए तो "सर्वार्थसाधका वारा गुरुशुक्रबुधेन्दवः। प्रोक्तमेव कृतं कर्म नौमार्कार्किषु सिध्यति ॥" "गुरु, शुक्र, बुध श्रने सोम ए वारो सर्व कार्यना साधक डे, श्रने भंगळ, रवि तथा शनिवारे जे कार्य करवानुं कर्तुं होय ते ज करवायी सिद्ध थाय बे." था दैवज्ञवल्सनमा कडं . त या "साक्षाकुसुंनमंजिष्ठारागे काश्चनजूषणे । शस्तौ नौमरवी लोहोपखत्रपुविधौ शनिः॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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