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________________ ॥दिनशुधिः॥ ४१ पीस्तालीश मुहूर्त्तनां संजोगीयां नक्षत्रमा बे श्रने त्रीश मुहूर्त्तनां संजोगीयां नक्षत्रमा एक पुतळु करीने नैत्य के दक्षिण दिशामां ते पुतळानी महा परिष्ठापना करवी, एटखे अग्नि संस्कार करवो. ११७. तिन्नेव उत्तराई पुणवसु रोहिणी विसाहा य । एए उनकत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ ११ ॥ सयनिस-नरणी साई अस्सेस-जिहाद बच्च नरकत्ता । पनरस-मुहुत्तजोगा तीसमुहुत्ता पुणो सेसा ॥ १० ॥ त्रण उत्तरा (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरालापद ), पुनर्वसु, रोहिणी, विशाखा, ए उ नत्रो पीस्तालीश मुहूर्त्तनां संयोगीयां कहेवाय . ११ए. शतभिषा, जरणी, स्वाति, अश्लेषा, ज्येष्ठा अने आओ, ए उ नत्रो पंदर मुहूर्त्तनां संयोगीयां कहेवाय ने, बाकीनां पंदर नक्षत्रो त्रीश मुहूर्त्तनां संयोगीयां कहेवाय बे. १२०. ॥ इति मृतक्रिया ॥ हवे दीक्षा तथा प्रतिष्ठा विषे कहे .मास-दिण-रिकसुधिं मुणिऊणं सिबायधुवलग्गे । बारंगुलम्मि सुके दिकपाश्वं कुजा ॥ ११ ॥ मास, दिवस अने नक्षत्र ए त्रणेनी शुद्धि जाणीने सिख गया अथवा ध्रुव लग्न होय त्यारे अथवा बार आंगळना शंकुनी बाया शुद्ध होय त्यारे दीदा तथा प्रतिष्ठा विगेरे शुन्न कार्यो करवां. १२१. हरिसयण अकम्मण अहियमास गुरिसुकि अस्थि सिसुवुके । ससि नठे न पश्हा दिरका सुक्कस्थि वि न उठा ॥ १२ ॥ हरि शय्यामां सुता होय एटले चतुर्मासमां, अधिक मासमां, गुरु शुक्रनो अस्त होय त्यारे, गुरु शुक्रनी बाल्यावस्था के वृक्षावस्था होय त्यारे तथा चंजनो नाश ( अस्त) होय त्यारे प्रतिष्ठा तथा दीक्षा करवी नहीं. तेमां शुक्रना अस्तमां दीक्षा इष्ट नथी, एटले के मात्र शुक्रनो अस्त होय तो दीक्षा देवामां दोष नथी. १२२. अवजोगकुलिअनदा उक्काई जत्थ तं दिणं वजे । संकंति सादिणतिह गहणे श्गु आश् सग पछा ॥ १३ ॥ भा०६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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