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________________ ॥दिनधिः ॥ त्रण पूर्वा (पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाजाप्रपद), मूळ, अश्लेषा, हस्त अने चित्रा, श्रा दश नक्षत्रो ज्ञाननी वृद्धि करनारां बे. १०३. ___ लोचकर्म विषे.पुणवसु श्र पुस्सो थ सवणो अ धणिज्यिा। एएहिं चनहिं रिकेहिं लोअकम्माणि कारए ॥ १४ ॥ कित्तिाहिं विसाहाहिं महाहिं नरणीहि अ। एएहि चाहिं रिकेहि लोअकम्माणि वजाए ॥ १०५॥ पुनर्वसु, पुष्य,श्रवण अने धनिष्ठा, आ चार नक्षत्रोमां लोचकर्म करवू शुन . १०४. कृत्तिका, विशाखा, मघा अने नरणी, या चार नक्षत्रोमां लोचकर्म वयं . (अर्थात् था श्राप सिवायनां बीजां नक्षत्रो मध्यम बे.) १०५. __कर्णवेध तथा राजाना दर्शनना नक्षत्रो.मिग-अणु-पुण-पुस्ता जिह-रेवऽस्सिणीया, सवण-कर-सचित्ता सोहणा कन्नवेहे। कर-सवणऽणुराहा-रेव-पुस्सास्सिणीआ, मिग-धणि-धुव-चित्ता दंसणे नूवईणं ॥ १०६ ॥ मृगशिर, अनुराधा, पुनर्वसु, पुष्य, ज्येष्ठा, रेवती, अश्विनी, श्रवण, हस्त अने चित्रा, एटलां नत्रो कर्णवेधमां सारां बे. हस्त, श्रवण, अनुराधा, रेवती, पुष्य, अश्विनी, मृगशिर, धनिष्ठा, ध्रुव (रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरालाजपद ) थने चित्रा, ए नक्षत्रो राजाना दर्शनमां शुक्ल . १०६. वस्त्रधारण.सूरे जिन्नं ससी अई मलिणं सणि धारिशं । लोमे पुरकावहं होइ वत्थं सेसेहि सोहणं ॥ १०७॥ नवं वस्त्र रविवारे धारण करवाथी (पहेरवाथी) जलदी जीर्ण थाय ने, सोमवारे पहेरवाथी आर्ष (जीनु ) रहे बे, शनिवारे धारण करवाश्री मलिन रहे जे, मंगळवारे पहेरवाश्री पुःखकारक थाय बे, अने बीजा (बुध, गुरु अने शुक्र) वारे नवं वस्त्र पहेरवु सारु . १०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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