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________________ ॥ दिनशुद्धिः ॥ ed योगिनी (जोगणी ) कहे बे. इगनवगाइकमा तिहि पुबुत्तरग्गिनेरदा दिए । पमिवाईसाणो जोइणि सा वामपिठि सुहा ॥ ७८ ॥ एकम ने नोम विगेरे तिथिना क्रमे करीने पूर्व, उत्तर, अग्नि, नैर्ऋत्य, दक्षिण, पश्चिम, वायव्य ने ईशानमां योगिनी होय बे. ते प्रयाणसमये वाम जागे अथवा पनवामे होय तो शुभ बे. ७०. ४१० योगिनी यंत्र. - दिशा | पूर्व | उत्तर | अग्नि नैर्ऋत्य | दक्षिण पश्चिम | वायव्य | ईशान हवे तत्काळनी योगिनी कहे बे. - दिदिसि धुरि चउघडिया पर पुत्तदिसिहि कमसो । तक्कालजोइणी सा वोयवा पयत्तेण ॥ ७९ ॥ (अमास) | जे दिशाए जे दिवसे योगिनी होय ते दिवसे ते दिशाए पहेली चार घमी तत्काळ योगिनी रहे बे. त्यारपवी पूर्वनी गाथामां कहेली दिशाना अनुक्रमे दरेक दरेक दिशाए चार चार घमी फरती फरे बे. ते तत्काळ योगिनी प्रयत्ने करीने एटले अवश्य वर्जवा योग्य बे. ७ ए. राहुविचार. - उदयत्थमणा चउ च घडियाई राहु पुवदिसि तत्तो । सिद्धीए दिसि बहिं गर्न सुदो पुछिदाहिए ॥ ८० ॥ दररोज सूर्यना उदयसमये छाने अस्तसमये राहु पहेली चार चार घकी पूर्व दिशामां होय . त्यापी सिद्धिने माटे बडी बही दिशाए चार चार घमी रहे बे, एटले के सूर्योदयथी पहेली चार घमी सुधी पूर्वमां, बीजी चार घमी वायव्यमां, त्रीजी चार घमी दक्षिणमां, चोथी चार घमी ईशानमां, पांचमी चार घमी पश्चिममां, बही चार घमी अग्नि खूणामां, सातमी चार घमी उत्तरमां ने श्रमी चार घमी नैईत्यमां. त्यारपबी पाठी बी दिशाए एटले पूर्वमां अस्तसमये आवे बे. या राहु प्रयाणसमये पवा तथा दक्षिण (जमणी ) बाजुए रह्यो होय तो ते सारो बे. ८०. शिवविचार. - चित्तुत्तरिगडुमासा दिसि विदिसि विसिहि सिवु तर्ज उदया । सिहि ढाई पण घडि दिसि विदिसिं पुठिमुहि सुहो ॥ ८१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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