SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ୫୪୭ ॥ लग्नशुद्धिः ॥ पीना सानो बुध श्रने त्यारपबीना ( बेला ) पांच त्रिंशांशोनो स्वामी शुक्र बे, अने सम राशिमां एथी विपरीत जाए, एटले के ५-५-८-१-५ अंशोना स्वामी अनुक्रमे शुक्र, बुध, गुरु, शनि ने मंगळ जावा. ए४. इति त्रिंशांशाः । ससदर गुरुबुह सुक्का सोमा सामन्नर्ड मुणेयब्वा । सेसा य हुंति कुरा त बुह खीएस सिणो ॥ ५ ॥ चं, गुरु, बुध छाने शुक्र ए चार ग्रहो सामान्य रीते सौम्य जाणवा, अने बाकीना ( रवि, मंगळ, शनि ) क्रूर जाणवा, तथा ते क्रूर ग्रहे सहित बुध होय तो ते क्रूर जावो अक्षीण चंद्रने पण क्रूर जावो. एए. । इति षड्वर्गशुद्धिः । उदयत्थसुद्धिमिन्हिं जणामि उदर्ज नवंसगो इत्थ । तम्मिय लग्ग विन्ने सनाददिहे उदयसुद्धी ॥ ए६ ॥ उदयास्तनी शुद्धि कहुं बुं. इहां ते लग्नमां वर्त्ततो जे नवमांश होय तेनो स्वामी लग्नने देखे ते उदयशुद्धि जाणवी. ए६. लग्गे नवसगो जो तस्सत्तमठाण लग्गा सत्तमवाणं जइ तो इह लग्नमां जे नवांशक होय तेनाथी सातमा स्थाननो स्वामी जो लग्नथी सातमा स्थानने जुए तो वहीं ते स्तशुद्धि कहेवाय बे. दिवई पिछे । त्यसुद्धिति ॥ ए ॥ वयगढ्णपश्ठासु उदयत्थ विसुद्धि वतियं पिसुहं । मन्नति के लग्गं तं च मयं बहुमयं नेह ॥ ए८ ॥ व्रतग्रहण ( दीक्षा ) तथा प्रतिष्ठादिकमां उदयास्तनी विशुद्धि विना पण केटलाएक लग्नने शुभ माने बे, पण ते मत घणाने संमत नथी. ए. इह उदयत्थविसुद्धी गहदिडीए विणा न संजवइ । संगे गहदिठी संपवरकामि ॥ ए७॥ एए उदयास्तनी शुद्धि ग्रहनी दृष्टि जाण्या विना संजवती नथी, तेथी या प्रसंगे हुं ग्रहनी दृष्टि कहुं बुं. एए. सहाणा दसमं ठाणं तश्यं च पायदिठीए । पिठंति गद्दा नवमं सपंचमं श्रद्ध दिडीए ॥ १०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy