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________________ ४३१ ॥ लग्नशुद्धिः॥ जिहा महा विसाहा अणुराहा रविदिणम्मि वजिजा। श्रासाढा उन्निय तह य विसाहा उ सोमम्मि ॥ ४५ ॥ रविवारने दिवसे जो ज्येष्ठा, मघा, विशाखा के अनुराधा होय तो ते वर्ण्य , सोमवारे पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा के विशाखा होय तो ते वय॑ बे. ४५. सयनिस अद्द धणिहा मंगलवारम्मि पुवनदवया । मूलऽस्सिणि नरणी रेवळ वजिऊ बुहवारे ॥ ४६॥ मंगळवारे शतभिषक्, श्रा, धनिष्ठा के पूर्वालाजपद होय, बुधवारे मूळ, अश्विनी जरणी के रेवती होय तो ते पण वर्ण्य . ४६. रोहिणि मिथसिर अद्दा सयनिसया विहप्फदिणम्मि । रोदिणिमहथसिलेसापुस्साई सुहाई नो सुक्के ॥४७॥ गुरुवारे रोहिणी, मृगशिर, श्रा6 के शतभिषक् होय, शुक्रवारे रोहिणी, मघा, अश्लेषा के पुष्य होय तो ते सुखकारक नथी. . उत्तरफग्गुणि हत्थो चित्ताऽऽसाढा उगं च एयाई। पंच वि नरकत्ता सणिवारे वङिवा ॥ ४ ॥ शनिवारे उत्तराफाटगुनी, हस्त, चित्रा, पूर्वाषाढा के उत्तराषाढा ए पांच नक्षत्रमांनुं कोइ एक होय तो ते वर्जवा योग्य . ४७. इति वारनदत्राशुनयोगाः। वजिऊ नरणि चित्ता उत्तरसाढा तहेव य धणिहा। उत्तरफग्गुणि पुस्सं रेवर सुराश्सु कमेणं ॥ ४ ॥ रविवारे जरणी होय, सोमवारे चित्रा होय, मंगळवारे उत्तराषाढा होय, बुधवारे धनिष्ठा होय, गुरुवारे उत्तराफाल्गुनी होय, शुक्रवारे पुष्य होय अने शनिवारे रेवती होय तो ते वर्जवा योग्य वे. ४ए । इति ग्रहजन्मनक्षत्राशुनयोगः । इति अशुनयोगबारम् । (३) अप्पहरो कुली उवकुलि असुहकालहोरा य । एए वि हु दिणदोसा वोयबा सुहे कजो ॥५०॥ अर्धप्रहर, कुलिक, उपकुलिक अने अशुल काळहोरा ए पण दिवसना दोषो ने, ते शुल कार्यमा तजवा योग्य . ५०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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