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________________ ॥ लग्नशुधिः ॥ रवि, बुध, बृहस्पति (गुरु ) अने शनि एटला वार व्रतग्रहणमा ( दीक्षामां ) शुन तथा बिंबप्रतिष्ठामां बृहस्पति, सोम, बुध अने शुक्रवार शुक्ल ने. १६. इति वाराः। मुत्तुं चदसि पनरसि नवमहमि बहिबारसि चउत्थी। सेसा उ वयग्गहणे गुणावहा उसु वि पकेसु ॥ १७ ॥ बन्ने पक्षनी चौदश, पूर्णिमा अने अमावास्या, नोम, श्राउम, उस, बारश अने चोण टली तिथि वर्जीने बीजी तिथि व्रतग्रहणमा शुन्न . १७. सियपके पमिवय बीथ पंचमी दस मि तेरसी पुन्ना । कसिणे पमिवय बीया पंचमि सुहया पश्चाए ॥ १७ ॥ पांतष्ठामां शुक्लपक्षनी एकम, बीज, पांचम, दशम, तेरश अने पूनम तथा कृष्णपक्षनी एकम, बीज अने पांचम एटली तिथि शुक्ल ने. १७. सवे वि वारतिहि सुहया सइ सिकिजोगसनावे । चंदमि उवचयंमि न जण नहम्मि जीमे वा ॥ १७ ॥ सर्वे वारो अने तिथि सिद्धियोग होय तो शुन्न ने, परंतु चंड नपचय होय श्रने नष्ट के हीण न होय तो. १ए. सियपभिवयाउ दस दिण चंदो मनिमबलो मुणेयवो। तत्तो अ उत्तमबलो अप्पबलो तश्य दसमम्मि ॥२०॥ शुक्लपक्षनी एकमथी दश दिवस सुधी चंग मध्यम बळवाळो जाणवो, त्यारपजीना दश दिवस उत्तम बळवाळो जाणवो अने त्रीजा दश दिवस सुधी अटप बळवाळो जाणवो. २०. इति तिथयः। उत्तर रोहिणि हत्थाणुराह सयनिसय पुवनदवया । पुस्स पुणवसु रेव मूलस्सिणि सवण सा वए ॥१॥ त्रणे उत्तरा, रोहिणी, हस्त, अनुराधा, शतभिषक्, पूर्वानाप्रपद, पुष्य, पुनर्वसु, रेवती मूळ, अश्विनी, श्रवण अने स्वाति, आटलां नवत्रो व्रतग्रहणमा (दीदामां) शुल बे. २१. मह मियसिर हत्थुत्तर अणुराहा रेवई सवण मूलं। पुस्स पुणवसु रोहिणि साइ धणिहा पश्चाए ॥२२॥ मघा, मृगशिर, हस्त, त्रणे उत्तरा, अनुराधा, रेवती, श्रवण, मूळ, पुष्य, पुनर्वसु, रोहिणी, स्वाति अने धनिष्ठा, एटलां नक्षत्रो प्रतिष्ठामा शुन्न . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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