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________________ ॥ श्री हरिजप्राचार्यकृता ॥ | लग्नशुद्धिः । वितसवाएसं नमिनं चोवीसमं जिणवरेसं । छामि समासेणं लग्गं सुगुरूवएसेणं ॥ १ ॥ जेनो सर्व आदेश सत्य बे एवा श्री चोवीशमा जिनेश्वरने नमीने सद्गुरुना उपदेशथी संक्षेपमां लग्ननी शुद्धि कहुं बुं. १. करूं कुणंतयाणं सुदावहो जोइसम्मि जो नपि । काल विसेसो लग्गं क पुण बहुविहं जइ वि ॥ २ ॥ तह विहु इह लोगुत्तर दिएको वहावणापहा । हिगिच्च लग्गसुधिं जणितमाणं निसामेह ॥ ३ ॥ कार्य करनारने माटे ज्योतिष शास्त्रमां जे काळविशेष सुखकारक कहेलो बे ते लग्न वा. जो कार्य घणां प्रकारनां बे, तोपण अहीं दीक्षा, उपस्थापना अने प्रतिष्ठा एत्रण लोकोत्तर कार्यने श्रीने हुं लग्ननी शुद्धि कहुं हुं ते तमे सांजळो ॥२- ३. सा पुण इह विनेया गोयरसुद्धीइ दिवससुद्धीए । तस्समयउदयपत्तस्स तह वि लग्गस्स सुद्धीए ॥ ४ ॥ ४२३ अने ते लग्नशुद्ध अहीं गोचरनी शुद्धिथी तथा दिवसनी शुद्धिश्री जाणवी, तथा ते समयमां उदय पामेला लग्ननी शुद्धिथी पण लग्नशुद्धि थाय बे. (अर्थात् गोचरशुद्धि, विशुद्ध शुद्धि ए त्रण द्वार बे ) ४. इति घारम् गुरु सिर वो बो दिरकोवद्वावणासु सीसस्स । जइ तो गोवरसुद्धी गुरुणो विदु ससिबले संते ॥ ५ ॥ जो दीक्षा तथा उपस्थापनामां शिष्यने गुरु, चंद्र ने रवि वळवान् होय ने आचार्यने पण चंद्र बळवान् होय तो गोचरशुद्धि जावी. ए. पाइ पुणो कारावयसावयस्स बलिएसु । गुरुससिसूरेसु जवे गोयरसुद्धि त्ति बिंति बुहा ॥ ६ ॥ Jain Education International प्रतिष्ठामां प्रतिष्ठा करावनार श्रावकने गुरु, चंद्र ने रवि वळवान् होय तो गोचरशुद्धि थाय एम पंकितो कहे बे. ६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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