________________
३६०
॥श्रारंजसिद्धि काना पहेला पादना पळो २७ मेळववाथी २२५ पळ थया, तेथी घमी ३ पळ ४५ मेष राशिना लग्ननुं मान थयु. कृत्तिकानां पाउला त्रण पादना पळो ७१, रोहिणीना ११५ अने मृगशिरनां वे पादना पळो ६० मेळववाथी कुल पळो २५६ थया, तेथी घमी ४ पळ १६ वृष राशिनुं मान थयु. ए रीते सर्वत्र जाणवू.)
हवे राशिउनी विशेष संज्ञाने तथा तेना प्रमाणने कहे .छादशराशि गणो राशिस्तु त्रिंशता नवति नागैः ।
नागे षष्टिलिप्ता लिप्ता षष्ट्या विलिप्तानिः ॥ ६४ ॥ अर्थ-बार राशि मळीने एक जगण ( नदत्रोनो समूह ) कहेवाय . ( एटले के बार राशि अने नगण ए बे नाम समान ,) त्रीश नागे करीने एक राशि थाय ने, एक नागमा ६० लिप्ता होय जे, अने एक लिप्ता ६० विलिप्ताए करीने थाय बे.
लागनुं बीजु नाम त्रिंशांश पण कहेवाय जे. तेनुं मान या रीते जे.__ "लग्नानां सर्वदेशेषु यन्मानं घटिकादिकम् ।
तच्च विघ्नं पलाद्यं स्यान्मानं त्रिंशांशकस्य हि ॥१॥" "सर्व देशोमां लग्नोनुं जे घटिकादिक मान कडं ने ते बमणुं करवायी जे संख्या श्रावे तेटला पळादिक त्रिंशांशनुं मान थाय .” ( कारण के एक घमीना बे त्रिंशांश होय बे, तेथी घमीने बमणी करीए तो तेटला पळ एक त्रिंशांशना थाय बे.)
लिप्तानुं बीजुं नाम कळा अने विलिप्तान बीजुं नाम विकळा पण बे. विशेष एकेएक विलिप्ता ( विकळा )नी साठ परम विकळा होय . ते परम विकळानुं बीजं नाम अक्षर कहेवाय जे. एक अदना पण साठ व्यहरो होय , परंतु ते ( व्यझर ) अत्यंत सूक्ष्म काळ होवाथी व्यवहारने योग्य नथी.
लग्नोनुं मान कह्यु. हवे सूर्यने स्पष्ट करवा माटे वारे संक्रांतिउनी अंतराल ( वच्चेनी) घमीउँने कहे जे.
सङ्कान्त्यन्तरनामिका अथ धृति १७ मेषादितोऽश्वेषुनिः५७, जूतेनेज्य मुनिगोनि एरष्टवसुनि नेत्रर्तुनि ६ २७ स्तथा। अत्यष्टिश्च १७ समन्विता त्रिनवनिः ए३ खेटर्तुनिःपए खर्तुनिः ६०,
सप्ताङ्गै ६७निधिकुञ्जरैदए रथ धृति १७ श्चन्छेक्षणैश्च १क्रमात् ॥६५॥ अर्थ-हवे संक्रांतिनी अंतराल घमी मेष राशिथी अनुक्रमे था प्रमाणे जे.-मेष अने वृष संक्रांतिनी वच्चे १०५७ घमी होय , एटले के मेष संक्रांति बेसे त्यारथी १८५७ घमीन जाय त्यारे वृष संक्रांति बेसे, अने त्यारपती १००५ घमी जाय त्यारे मिथुन संक्रांति बेसे. अर्थात् मेष संक्रांति १०५७ घमी सुधी रहे , वृष संक्रांति १०५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org