SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ३४५ तो नंदन ३ योग थाय ने,) लग्नमां बुध अने गुरु रह्या होय तो जीमूत ४ योग प्राय बे, बुध अने शुक्र होय तो जय ५ योग थाय , गुरु अने शुक्र होय तो स्थिर ६ योग थाय ने, तथा लग्नमां बुध, गुरु अने शुक्र त्रणे रह्या होय तो अमृत ७ योग श्राय . अहीं किनो अर्थ बबे अने त्रिकनो अर्थ त्रण थाय . योगा यथार्थनामानः सर्वेषूत्तमकर्मसु । ऐश्वर्यराज्यसाम्राज्यविधातारः क्रमादमी ॥५॥ अर्थ- साते योगो सर्व उत्तम कार्यमा यथार्थ नामवाळा होवाथी शुन्न , तथा श्रा योगो अनुक्रमे ऐश्वर्य, राज्य अने साम्राज्यने करनारा . राजाने जे शासन करे ते सम्राट् कहेवाय ने, तेथी साम्राज्यनो अर्थ चक्रवतीपणुं थाय बे. अनुक्रमे ऐश्वर्या दिकने करनारा बे एटले के एक एक ग्रहवाळो योग होय तो ऐश्वर्य आपे, बबे प्रहनो योग होय तो राज्य आपे, अने त्रणे ग्रहनो योग होय तो साम्राज्य आपे. आरीते सर्व (१२-४-७) मळीने त्रेवीश योग थाय जे. हवे प्रतिष्ठाना लग्नमां रेखाने आपनारी ग्रहसंस्था कहे .प्रतिष्ठायां श्रेष्ठो रविरुपचये ३-६-१०-११ शीतकिरणः, खधर्माब्ये तत्र५-३-६-५-१०-११ क्षितिजरविजौत्र्यायरिपुगौ३-११-६। बुधवाचार्यों व्ययनिधनवर्जी १-२-३-४-५-६-७-८-१०-१९भृगुसुतः, सुतं यावद्वग्नान्नवमदशमायेष्वपि तथा?-२-३-४-५-ए-१०-११ ॥५१॥ अर्थ-प्रतिष्ठामां सूर्य जो उपचय (३-६-१०-११)स्थानमा रह्यो होय तो ते श्रेष्ठ बे. चं धन (२) अने धर्म (ए) स्थान सहित पूर्वनां स्थानोमां (२-३-६-ए१०-११) रह्यो होय तो ते श्रेष्ठ बे. मंगळ अने शनि त्रि, आय अने रिपु (३-११-६) स्थानमा श्रेष्ठ बे. बुध अने गुरु व्यय (१२) तथा निधन (७) ए बे स्थान सिवाय बाकीनां (१-३-३-४-५-६--ए-१०-११) स्थानोमां श्रेष्ठ बे. तथा शुक्र लग्नथी सुत (पांचमा) नवन सुधी (१-२-३-४-५) तथा नवमा, दशमा अने अगीयारमा स्थाने रहेलो श्रेष्ठ बे. वळी त्रिविक्रमे नंग देनारा ग्रहो या प्रमाणे कह्या बे."लग्नमृत्युसुतास्तेषु पापा रन्ध्रे शुन्नाः स्थिताः। त्याज्या देवप्रतिष्ठायां लग्नषष्ठाष्टगः शशी ॥१" आ०१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy