________________
३३४
॥श्रारंसिद्धि। सर्व कार्योमा शुल ग्रहनी संस्था दैवज्ञवश्वजमां या प्रमाणे कही जे."लग्नाऽपचयस्थे ३-६-१०-११ऽर्केऽन्त्या १२ स्त ७ कर्मा १० य ११गे विधौ । दोणीपुत्रेऽर्कपुत्रे च मुश्चिक्य ३ रिपु ६ लान ११ गे॥१॥ त्यक्तरिष्या १२ ष्टमे 0 सौम्ये जीवेऽष्टा रि ६ व्ययो १२ जिते ।
सर्वकार्याणि सिध्यन्ति त्यक्तषट्सप्तमे सिते ॥२॥" "लग्नथी उपचय (३-६-१०-११) स्थानमां सूर्य रह्यो होय, बारमा, सातमा, दशमा अने श्रगीयारमा स्थानमां चंपरह्यो होय, मंगळ अने शनि त्रीजा, बजने श्रगीयारमा स्थानमा रह्या होय, बुध बारमा थने आठमा सिवाय बीजा कोर पण स्थानमा रह्यो होय, गुरु आवमा, बा अने बारमा सिवाय बीजा कोश पण स्थानमा रह्यो होय, तथा शुक्र बहा अने सातमा स्थान सिवाय बीजा कोइपण स्थानमा रह्यो होय तो सर्व कार्यो सिख थाय बे." था उत्तम अने अशुन (अधम ) ए बे प्रकारनी संस्थाधी जे ग्रहो बाकी रह्या होय ते मध्यम संस्थामां जाणवा. यंत्र या प्रमाणे| उत्तम.
मध्यम.
अधम. रवि |३-६-१०-११
३-४-५-0-0-१२ चंड
३-३-४-५-ए मंगळ | ३-६-११
३-४-५-ए-१०-१५ बुध |१-३-३-४-५-६--ए-१०-११।। गुरु १-३-३-४-ए-3-ए-१०-११
६-१२ शुक्र ११-३-३-४-५-0-0-१०-११-१२
६-७ शनि ३-६-११
| २-५-५-७-ए-१०-१२ १-७ राहु ३-६-११
| २-५-1-ए-१०-१२ १-४-9 केतु ३-६-११
२-५-७-ए-१०-१२ १-४-७ श्रा रीते सर्व कार्यमा सामान्य रीते ग्रहोनी संस्था जे. हवे दीक्षाना खग्नमां असाधारण (विशेष) शुन्न ग्रहोनी संस्थाने कहे .दीक्षायां तरणिर्धन त्रि३तनया परिस्थिः शशी विशत्रि३ षट्६व्योम १० स्थः क्षितिनूस्त्रि३षदशमगोरण्ञज्यौ व्यया ११ष्टोणज्जितौ
१-२-३-४-५-६--ए-१०-११। शुक्रोऽन्त्या १५ रिसुत ५ त्रि३धर्म एधन श्गो मन्दो धन श्ञातृ३षट्दपुत्रपछि गतश्च शोजनतमः सर्वे च लाजस्थिताः॥ ३५॥
अर्थ-दीक्षानी सन्मकुंमळीमां जो सूर्य वीजे, त्रीजे, पांघमे के ब स्थाने रह्यो होय तो ते अत्यंत शुन्न , चंग बीजे, त्रीजे, बछे के दशमे स्थाने रह्यो होय तो ते शुलने,
ローカー
G
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org