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________________ ३३२ ॥श्रारंसिधि॥ श्रने जे गुण सारी रीते व्यापीने रह्यो होय तेज अनुसरवा योग्य बे, जेथी करीने अंशोए करीने लग्नना नावधी अधिक श्रयेलो पांचमो शुक्र पण आबादीने माटे नयी (शुल नथी ). अर्थात् चोथा स्थानमा रहेलो शुक्र जो अंशोए करीने लग्नना लावधी अधिक स्थानमां एटले पांचमा स्थानमा जतो होय तोपण ते शुन्न नथी.” श्रा सर्व हकीकत विवाहने आश्रीने विवाहवृंदावनादिक ग्रंथोमां कही बे. नवेजन्मनि जन्मान्मृत्युधामनि यो ग्रहः। शुनोऽपि लग्नवत्यैष सर्वकार्येषु नो शुजः ॥३१॥ अर्थ-जन्मसमये जन्मराशिथी अथवा जन्मलग्नथी आउमा स्थानमा जे ग्रह रह्यो होय ते जो कदाच शुज होय तोपण विवाहादिक सर्व शुन्न कार्यमां लग्नने विषे वर्ततो ते ग्रह शुन्न नथी. जन्मने विषे एटले जन्मसमये. जन्मात् एटले शव शब्दना बे अर्थ होवाथी जन्मराशिथी अथवा जन्मलग्नथी. शुन्न होय तोपण अर्थात् क्रूर ग्रहनुं तो शुं कहेवू ? वळी नास्कर तो था प्रमाणे कहे . "जन्मजन्मलग्नान्यां यौ रन्ध्रेशावथाष्टमे । लग्ने ताँश्च तदंशाँश्च तत्राशीनपि च त्यजेत् ॥१॥" "जन्मराशिथी तथा जन्मलग्नथी जे श्रापमा स्थानना स्वामी लग्नने विषे उमा स्थानना स्वामी लग्नने विषे श्राग्मे होय ते श्राठमाना स्वामी तथा तेना अंशो तथा ते आठमी राशिनो त्याग करवो." शनि स्त्रिकोणकेन्द्रस्थो बलीयान् सुहृदादितः। कुजः केन्जान्त्यधर्माष्टस्थितो वा नजञ्जनः ॥३॥ अर्थ-त्रिकोणमां के केन्प्रस्थानमा रहेलो शनि अति बळवान् अने तेना मित्रवमें जोवायेलो (तेना पर तेना मित्रनी दृष्टि पमती) होय अथवा केन्मस्थानमां, बारमा स्थानमां, नवमा स्थानमां के आठमा स्थानमा रहेलो मंगळ पण अत्यंत बळवान् अने तेना मित्रवझे जोवायेलो होय तो नमनंजन नामनो योग थाय . आ कुयोगनी सार्थक संज्ञा बे. अर्थात् अशुन .थाउमा स्थानमा रहेला मंगळचें फळ गर्गे था प्रमाणे कडं . _ "लग्नानौमेऽष्टमगे दम्पत्योर्वह्निना मृतिः समकम् ।। __ जन्मनि यो वाऽष्टमगस्तस्मिनग्नं गते वाऽपि ॥१॥" __ "मंगळ जो लग्नथीभाउमा स्थानमा रह्यो होय अथवा जन्मसमये जे ग्रह श्राठमो होय ते ग्रह जो विवाहना खग्नमां रह्यो होय तोपण ते वर वहुनुं एक साज अग्निथी मृत्युथाय ." रविः कुजोऽर्कजो राहुः शुक्रो वा सप्तमस्थितः। हन्ति स्थापककर्तारौ स्थाप्यमप्यविलम्बितम् ॥ ३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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