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॥श्रारंसिद्धि॥ चंड पण एकलोज रह्यो होय तो ते शुन्न . केटलाएक बुध अने गुरु सहित एवा चंजने शुन कहे चे, कारण के ते बुध श्रने गुरु सिवायना बीजा ग्रहोनी साथे रहेला चंजनुं फळ आ प्रमाणे कहे .
"रविणा १ सणि २ नोमेहिं ३ सुक्क । केऊहिं ५ राहुणा ६। एगरासिगए चंदे जुझ्दोसो पवुच्चश्॥१॥ दरिद्दा १ समणी २ चेव मरणं ३ ससवत्तिा ।।
कवालिणी अ५ पुस्सीला ६ कमा नारी विवाहिया ॥२॥" ___“चं जे राशिमा ( स्थानमां ) रह्यो होय तेज राशिमां जो रवि १, शनि २, मंगळ ३, शुक्र ४, केतु ए के राहु ६ रह्यो होय तो ते युति दोष कहेवाय जे. ते युति दोषमां विवाहित थयेली नारी अनुक्रमे या प्रमाणे फळ पामे .-रविनी युति होय तो ते स्त्री दरिख थाय ने १, शनिनी युति होय तो ते साध्वी थर जाय बे २, मंगळनी युति होय तो ते मरण पामे डे ३, शुक्रनी युति होय तो ते सपत्नीवाळी थाय डे ४, केतुनी युति होय तो ते कापालिनी (परिव्राजिका ) थाय ने ५, अने राहुनी युति होय तो ते कुशीळवाळी ( कुलटा) थाय ने ६.”
शुक्र श्रने चंजनी युति विवाहने विष सर्वथा त्याग करवा योग्य वे एम व्यवहारसारमा कडं बे, पण सत्यसूरि तो आ प्रमाणे कहे .
"अन्यतेऽन्यगृहे वा कुजबुधगुरुशुक्रशौरिलिः सार्धम्।
न नवति दोषाय शशी प्रदक्षिणं याति यदि चैषाम् ॥१॥" "अन्य नक्षत्रमा के अन्य स्थानमा मंगळ, बुध, गुरु, शुक्र के शनिनी साथे चंजमा रह्यो होय, अने वळी जो ते चं ते मंगळादिकनी दक्षिण ( जमणी ) बाजुए चालतो होय तो ते चंग दोषने माटे नथी."
विशेषमां दैवज्ञवसन कहे जे के-"ध्याद्यैः क्रूरैर्युते चन्छे व्यसुः प्रव्रजितः शुलैः।" "बे अथवा तेथी अधिक क्रूर ग्रहोए करीने अथवा सौम्य ग्रहोए करीने युक्त एवो चंड होय त्यारे जो दीक्षा सीधी होय तो ते मरण पामे बे." ___ उपर त्रेवीशमा श्लोकमां लग्नथी के चंथी सातमा स्थानमां शुक्र के क्रूर ग्रह रह्यो होय तो तेने जामित्र दोष कह्यो बे, ते दोषनो मतांतरे करीने अपवाद (जंग) कहे जे.
पञ्चपञ्चाशमेवांशं जामित्रं परमं परे।
अंशाज्फन्ति लग्नेन्छोर्गर्हितग्रहदूषितम् ॥ ७ ॥ अर्थ-केटलाक आचार्यों कहे जे के लग्न अने चंजनो जे अंश कार्य वखते अधि
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