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॥ पञ्चमो विमर्शः ॥
३१ए
परलेली स्त्री पराजवे करीने युक्त थाय बे," परंतु ग्रंथकारना मतमां तो धननो उत्तरार्धज विरुद्ध बे ने पूर्वार्ध तो मनुष्य जाति बे, तेथी शुज बे. वळी रत्नमाळामां तो लग्ननो पण नियम या प्रमाणे कह्यो बे. -
"कन्या नृयुग्मं च वणिग्विलग्ने, स्थितो विवाहः शुजमादधाति ।”
"जो लग्नमां कन्या, मिथुन के तुला राशि रही होय तो तेमां करलो विवाह शुभकारक बे." आ लग्नोमां पण नवांशानो नियम उपर कह्या प्रमाणेज जाणवो. ते विषे जास्कर कहे बे के—
"निन्द्येऽपि लग्ने दिपदांश इष्टः, कन्यादिलग्नेष्वपि नान्यजागः । "
"लग्न निंद्य (अशुभ) होय तोपण मनुष्यना नवांशाज इष्ट बे, अने कन्यादिक लग्नमां पण बीजो ( मनुष्य सिवायनो ) अंश इष्ट नथी.” वळी व्यवहारप्रकाशमां तो या प्रमाणे कहे बे. -
"धन्वांशो न बुधास्ते जौमास्ते नो तुलांशकः कार्यः । न तुलांशश्वरलग्ने देयस्तुलमकरसंस्थेन्दौ ॥ १ ॥ "
"बुधनो अस्त होय तो धननो नवांशो लेवो नहीं, मंगळनो अस्त होय त्यारे तुलनो देवो नहीं, ने तुल तथा मकरनो चंद्र होय त्यारे चर लग्नमांतुलनो अंश देवो नहीं." वे सर्व (त्रणे ) प्रकारनां लग्नने विषे साधारण नियम कहे बे. - क्रूरमध्यस्थ शुक्रकूराश्रितनौ ।
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ष्ट लग्नविधू केन्द्रस्थितसौम्यौ तु तौ मतौ ॥ २३ ॥
अर्थ - (प्रतिष्ठा, दीक्षा ने विवाह ) ने विषे बे क्रूर ग्रहनी मध्यमां ( वच्चे ) जो लग्न के चंद्र रहेलो होय तो ते इष्ट ( शुज ) नथी. तथा लग्न के चंद्रथी सातमुं स्थान शुक्र के क्रूर ग्रहे आश्रित कर्यु होय तो ते पण इष्ट नथी, परंतु जो लग्न के चंद्रथी केंद्रनां चारे स्थानमां सौम्य ग्रहो रह्या होय तो ते ( लग्न अने चंद्र ) इष्ट बे.
ने विषे एटले प्रतिष्ठा, दीक्षा ने विवाहने विषे बे क्रूर ग्रहनी मध्यमां रहेला जो लग्न के चंद्र होय एटले के लग्ननी बन्ने बाजुए एटले बीजा ने बारमा स्थानने विषे क्रूर ग्रहो होय, ने तेज रीते चंद्रनी पण बन्ने बाजुए क्रूर ग्रहो होय तो श्रा बन्ने प्रकारे क्रूर कर्तरी कदेवाय बे. या प्रत्येक क्रूर कर्तरी ऋण ऋण प्रकारनी बे- अति दुष्टा १, टाप दुष्टा ३. तेमां जो धन एटले बीजा स्थानमा रहेलो क्रूर ग्रह वक्री होय, अने व्यय ( बारमा ) स्थानमा रहेलो क्रूर ग्रह मध्यम गतिवाळो होय तो
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