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॥ पञ्चमो विमर्शः॥
३१७ "वृश्चिकांशमां प्रतिष्ठा करी होय तो त्रण दिवसमां राजपीमाथी उत्पन्न थयेलो महाकोप तथा महा भयंकर अग्निनो दाह थाय एम कहेवू."
“धन्वांशे धनवृधिः स्यात् सनोगं च सदा सुरैः।
प्रतिष्ठापककर्तारौ नन्दतः सुचिरं नुवि ए॥७॥" "धनांशमां प्रतिष्ठा करवाथी धननी वृद्धि थाय ने, अने निरंतर देवो पासेथी सारा लोग प्राप्त थाय , तथा प्रतिष्ठा करनार अने आचार्य चिर काळ सुधी पृथ्वी पर आनंद पामे ."
"मकरांशे नवेन्मृत्युः कर्तृस्थापकशिपिनाम् ।
वज्रास्त्राचा विनाशस्त्रिनिरब्दैन संशयः १०॥७॥" "मकरांशमां प्रतिष्ठा करी होय तो प्रतिष्ठापक आचार्य, प्रतिष्ठा करावनार तथा शिल्पीनुं मृत्यु श्राय , तथा त्रण वर्षनी अंदर वज्रश्री के शस्त्रधी तेनो (बिंबनो) नाश थाय बे, तेमां कां पण संशय नथी." ।
“घटांशे निद्यते देवो जलपातेन वत्सरात् ।।
जलोदरेण कर्ता च त्रिनिरन्दैर्विनश्यति ११॥ए॥" "कुंलांशमां प्रतिष्ठा करी होय तो एक वर्षनी अंदर जळना पम्वाथी देव (प्रतिमा) जेदाय बे-नाश पामे ,अने प्रतिष्ठा करनार त्रण वर्षमां जलोदरना व्याधियी नाश पामे ."
“मीनांशे त्वच॑ते देवो वासवाद्यैः सुरासुरैः।।
मनुष्यैश्च सदा पूज्यो विना कारापकेन तु १२॥१०॥" "मीनांशमां प्रतिष्ठा करवाथी ते देव (प्रतिमा) इं विगेरे सुर असुरोए पूजाय , तथा करावनार विना बीजा सर्व मनुष्योए पण सदा पूजाय ,अर्थात् करावनार मरण पामे ." रतमाळामां तो मंगळने वर्जीने बीजा सर्वे ग्रहोना ब वर्गो प्रतिष्ठामा शुन्न कह्या .
हवे दीक्षाने विष लग्नांशो कहे जे.व्रताय राशयो ट्यगाः स्थिराश्चापि वृषं विना ।
मकरश्च प्रशस्याः स्युर्खग्नांशादिषु नेतरे ॥१॥ अर्थ-दीक्षाने विषे, खग्नमां तथा नवमांशमां विस्वन्नाव राशि, वृष विनानी स्थिर राशि अने मकर राशि, एटली राशि शुन्न . ते सिवायनी बीजी राशि शुन नथी.
अर्थात् मिथुन, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धन, मकर, कुंल अने मीन, ए श्राउ राशि शुन बे, बीजी मेष, वृष, कर्क थने तुला ए चार राशि लग्नमां, नवांशोमां अने “आदि" शब्द कह्यो माटे वादशांशमां पण त्याग करवा लायक . ते विषे नारचंडमां कडं ने के
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