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________________ ३१४ ॥ श्रारंसिधि॥ "गुरु के शुक्र जो केन्म के त्रिकोणस्थानमां होय तो नक्षत्रसंधि, तिथिसंधि श्रने योगसंधि ए दोषने देनारा थता नथी, तथा संधिए करेला जे बीजा दोषो होय ते पण नाश पामे , एम गर्गे, वशिष्ठे, अत्रिए अने पराशर शषिए कहुं बे." ॥ इति नतिथियोगादिसन्धिदोपलंगः ॥ १५॥ तिथिदोषनो नंग “तिथिरेकगुणा प्रोक्ता" (तिथि- फळ एक गुणुं बे) ए वचनधी स्पष्टज बे. अथवा “दिने बलवती तिथिः” (तिथि- बळ दिवसे होय ), "तिथ्यधै तिथिफलं समादेश्य" (तिथिना अर्धा लागमां तिथिचें फळ कहेवू)विगेरेटी जाणवू.१६.तथा “सर्वेषां तु कुयोगानां वर्जयेद् घटिकाध्यम् । उत्पातमृत्युकाणानां सप्त षट् पञ्च नामिकाः॥१॥" "सर्वे कुयोगोनी बबे घमी वर्जवी, उत्पात योगनी सात घमी, मृत्यु योगनी उ अने काण योगनी पांच घमी वर्जवी" एम नारचंजनी टिप्पणीमां कडं बे. केटलाएक मृत्यु योगनी बार घमी त्याग करवान कहे . तथा ___"यमघंटे नवाष्टौ च कालमुख्यां विवर्जयेत् । ___ दग्धे तिथौ कुवारे च नामिकानां चतुष्टयम् ॥ १॥" "यमघंटनी नव घमी अने काळमुखीनी भाउ घमी वर्जवी, तथा दग्ध तिथिमां अने कुवारमा चार चार धमी तजवी" एम पण केटलाएक कहे . तथा "कुतिहि कुवार कुजोगा विजी विश्र जम्मरिरक दहतिही। मन्नएहदिणा परं सर्व पि सुलं नवेऽवस्सं ॥१॥" __ "कुतिथि, कुवार कुयोग, विष्टि, जन्मनक्षत्र अने दग्ध तिथि ए सर्वे मध्याह्न पली अवश्य शुज थाय " एम हर्षप्रकाशमां कडं बे. लस पण कहे जे के "विट्यामङ्गारके चैव व्यतीपातेऽथ वैधृते । प्रत्यरे जन्मनक्षत्रे मध्याह्नात्परतः शुलम् ॥ १॥" “विष्टि, अंगारक, व्यतीपात, वैधृत, प्रत्यर ( सातमी तारा) अने जन्मनक्षत्र, श्रा दिवसोने विषे मध्याह्न पठीनो काळ शुल." अहीं "प्रत्यर" शब्दनो अर्थ सातमी तारा बे, श्रने तेना उपलहणथी त्रीजी, पांचमी अने श्राधान तारा पण जाणवी, तेथी करीने ते ताराउने विषे पण मध्याह्न पनीनो काळ शुन जाणवो. या प्रमाणे सामान्य रीते प्रतिष्ठामा घणा दोषोनो जंग कह्यो. . ॥इति सामान्येन प्रतिष्ठायां बहुदोषनंगः॥ हवे प्रतिष्ठामां बनना अंशनो नियम कहे जे.लग्नं श्रेष्ठं प्रतिष्ठायां क्रमान्मध्यमथावरम् । ध्यङ्ग स्थिरं च नूयोनिर्गुणैराढ्यं चरं तथा ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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