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॥श्रारंसिधि॥ धने व्यये यदा लग्ने सप्तमे नवने ग्रहाः।
उत्रयोगस्तदा नीचकुलोऽपि नृपतिर्नवेत् ॥ ए॥ __ बीजा, बारमा, पहेला अने सातमा लवनमां ग्रहो रहेला होय त्यारे उत्रयोग थाय वे. तेमां उत्पन्न अयेलो नीच कुळवाळो पण राजा थाय बे.
सिंहे जीवस्तथा शुक्रः कन्यायां मिथुने शनिः।।
स्वदेत्रे हिबुके नौमः स पुमान्नायको नवेत् ॥ १० ॥ सिंह राशिनो गुरु होय, कन्यानो शुक्र होय, मिथुननो शनि होय श्रने चोथा स्थानमा मेष अथवा वृश्चिकनो मंगळ दोय तो तेमां जन्मेलो पुरुष नायक ( राजा) थाय बे.
कन्यायां शौरिचन्त्रौ च मृगे नौमो घटे तमः।। ___सिंहे जीवो नवेजातो राजा शत्रुक्षयंकरः॥ ११॥ कन्या राशिमां शनि अने चंज होय, मकरनो मंगळ होय, कुंजनो राहु होय तथा सिंहनो गुरु होय एवा योगमा उत्पन्न श्रयेतो माणस शत्रुनो क्षय करनारो राजा थाय ने.
शुक्रो जीवो रविन्नौंमो धने मकरकुंलयोः।
मीने च वत्सरे त्रिंशे जातः स्यात्सर्वकर्मकृत् ॥ १२॥ धन, मकर, कुंल अने मीन राशिमां अनुक्रमे शुक्र, गुरु, रवि अने मंगळ होय तो ते योगमा उत्पन्न श्रयेलो माणस त्रीश वर्षनो श्राय त्यारे सर्व कार्यने करनारो (समर्थ ) श्राय .
खग्ने सौरिस्तथा चन्प्रश्चाष्टमे नवने सितः।
राजमान्यो महाकामी नोगपत्नीरतस्तथा ॥ १३ ॥ लग्नमां शनि अने चंड होय तथा आठमा नवनमां शुक्र होय तो ते योगमां उत्पन्न थयेलो मनुष्य राजाने मान्य थाय ने, मोटी कामनावाळो तथा लोग अने पत्नीमां आसक्त थाय जे.
मिथुने च यदा राहुः सिंहस्थो नूमिनन्दनः।
वृश्चिके च यदा जीवः स पुमान्नृपतिर्भवेत् ॥ १४ ॥ मिथुनमां राहु होय, सिंहमां मंगळ होय अने वृश्चिकमां गुरु होय त्यारे ते योगमा उत्पन्न अयेलो माणस राजा थाय बे.
स्वगृहे च धने जीवस्तुलायां च नवेत्सितः।
शौरिर्मकरे मिथुने चन्म: स्यात्राजयोगकृत् ॥ १५॥ पोताना गृहमां के धनराशिमां गुरु होय, तुलामां शुक्र होय, मकरमां शनि होय अने मिथुनमां चंच होय तो ते राजयोग करनारो .
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