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________________ १३६ ॥ श्ररंजसिद्धि ॥ बे. (१४). ने मंगळथी एकांतर गृहमां रहेलो बुध पण शुभ वे. (१५). दैवज्ञवलनमां पण कांबे के "गुजादथवा महीसुताद्बुध एकान्तरने स्थितो यदा । रविजादथवा गुरुस्तदा, व्रजतो यान्त्यरयः क्ष्यं रणे ॥ १ ॥” " शुक्रथी अथवा मंगळथी एकांतर राशिमां जो बुध रह्यो होय, अथवा शनिथी एकांतर राशिमां जो गुरु रह्यो होय तो ते समये यात्रा करनारना शत्रु युद्धमां य पामे बे." गुरुर्जयाय लग्न १ स्थः क्रूरैर्लान ११ ननो १० गतैः (१६) तथा चन्द्रेऽष्टमे षष्ठे शुक्रे लग्नगतो गुरुः ( १७ ) ॥ ५८ ॥ अर्थ - लग्नमां (पहेला जावमां ) गुरु होय, अने क्रूर ग्रहो अगीयारमे तथा दशमे स्थाने दोय तो ते जयने माटे बे. (१६) चंद्र आठमा जावमां होय, शुक्र वा जावमां हो ने गुरु लग्नमां होय तोपण ते जयने माटे बे. या सर्वे मळीने कुल १७ योगो यया. हवे योगपिंक ( योगनो समूह ) कहे बे. - सिधी ए धर्म एए केन्द्रेषु बुधवाकूप तिजार्गवैः । १ योगो ऽधियोगो योगाधियोग ३ चैक १ द्विक २ त्रिकैः ३ ॥ ५ ॥ अर्थ- बुध, गुरु ने शुक्र ए त्रणमांथी एक ग्रह जो पांचमा, नवमा के केन्द्रमांना कोइ पण स्थानमां होय तो ते योग कहेवाय बे. तेवी ज रीते ( ते ज स्थानोमां ) जो बुध, गुरु ने शुक्रमांना वे ग्रहो रह्या होय तो धियोग थाय बे, अने ते त्र ग्रहो तेज स्थानोमा रह्या होय तो योगाधियोग थाय बे. या त्रणेनुं फळ दैवज्ञवननमां श्र प्रमाणे कं बे. - "योगेन यो याति नृपोऽरिदेशं, सुखेन सोऽभ्येत्यधियोगयाता । प्राप्नोति कीर्ति विजयं धनं च, योगाधियोगेन महीमशेषाम् ॥ १ ॥” "जे राजा योगे करीने शत्रुना देश उपर प्रयाण करे बे ते सुखेश्री पाबो वे बे, धियोगमां यात्रा करनार ( राजा) कीर्ति, विजय ने धन पामे बे, तथा योगाधियोगे करीने समग्र पृथ्वी पामे बे." अहीं या प्रमाणे आम्नाय बे. जो बीजो कोइ यात्रानो योग मळे अथवा न मळे तोपण जो बुध, गुरु ने शुक्र ए त्रणमांथी कोइ पण ग्रह उपर गणावेलां स्थानोमांथी कोइ पण स्थाने रह्यो होय तो ते ज वखते यात्रा करवी शुज बे, अने वे अथवा त्रणे ग्रहो उक्त स्थानमा रह्या होय तो ते घणाज उत्तम बे. यत्र योगो स्थूल दृष्टिए कह्या बे, पण सूक्ष्म दृष्टिए जोतां तो ऋणसो ने बेंता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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