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॥ आरंज सिद्धि ॥
गुरु के बुधना वर्गमां चंद्र रह्यो होय त्यारे विद्या ने शिल्पनो श्रारंभ करवो शुभ बे. ॥ इति विद्या ए शिपारंचौ १० ॥
वे नाटक तथा काव्यना आरंभ विषे कहे बे. - बुधे लिने शशिनि राशौ गुरुवीक्षिते । हिबुकस्यैः शनैर्नृत्यं काव्यं चारच्यते बुधैः ॥
११ ॥
मां बुध रह्यो होय, बुधनी राशिमां चंद्र रह्यो होय अने तेना पर गुरुनी दृष्टि पकती होय तथा शुभ ग्रहो चोथा स्थानमा रह्या होय त्यारे माह्या पुरुषो नृत्य तथा काव्यनो प्रारंभ करे बे.
॥ इति नाट्य ११ काव्यारंजौ १२ ॥ वे मंत्रादिक ग्रहण करवानो समय कहे बे. - शीतांशी बुधराशिस्थे शुभेषूदयवर्त्तिषु । मंत्रादिग्रहणं कार्यं हित्वा पापग्रहोदयम् ॥ १२ ॥
बुधनी राशिमां रह्यो होय, शुभ ग्रहो उदयमां वर्त्तता होय, अने पाप ग्रहनो उदय न होय त्यारे मंत्रादिक ग्रहण कर.
॥ इति मंत्रादिग्रहणं १३ ॥
हवे वेतासमंत्रादिकना साधवानुं मुहूर्त्त कहे बे. - पित्र्यैशयाम्यमूलेन्डुषु शुद्धेऽष्टमेऽपि च ।
वेताल सिद्धिः पाताले नृगौ के कुंजलग्नगे ॥ १३ ॥
मघा, जरणी, मूल ने मृगशिरमां श्रमुं स्थान शुद्ध होय त्यारे तथा चोथा स्थानम शुक्र होय ने कुंभ लग्नमां बुध रह्यो होय त्यारे वेताल मंत्रादिक सिद्ध थाय बे. ॥ इति वेतालमंत्रादिसाधनम् ॥ १४
दवे धर्मना
रंजनुं तथा नंदी मांग्वानुं मुहूर्त्त कदे बे. - egash गुरौ लग्ने धर्मारंजो खेर्दिने । गुरुग्नवर्गे वा शुजारंजास्तयोर्बले ॥ १४ ॥
सूर्य चोथा स्थानमा रह्यो होय ने लग्नमां गुरु रह्यो होय त्यारे रविवारने दिवसे धर्मनो आरंभ करवो, अथवा गुरु, बुध अने लग्नना वर्गमां अथवा ते ( रवि छाने गुरु )नुं बळ होय त्यारे शुभ कार्यना श्रारंभ करवा.
॥ इति धर्मारंज १५ नन्द्यादिके ॥ १६ हवे दीक्षानुं मुहूर्त्त कहे बे. - मोक्षार्थिनां च दीक्षा स्थिरोदये कर्मगे त्रिदशपूज्ये पापैर्धर्मप्राप्तैर्बलहीनैः प्रत्रजितयोगे ॥ १५ ॥
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