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॥ तृतीयो विमर्शः ॥
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कार्यों रिक्ता तिथिमां, अशुभ योगमां, क्रूर लग्नादिकमां, क्रूर वारमां ने कृष्णपक्षमां करवा लायक बे, छाने अन्यत्र एटले शुभ कार्योंमां एथी विपरीत जाएं. * जे लग्न क्रूर ब वर्गवाळु, क्रूर ग्रहे अभ्यास करेलुं, अथवा क्रूर ग्रहे जोयेलुं होय तेमज ( आदि शब्द होवाथी ) तीक्ष्ण, उग्र अने मिश्र नक्षत्रो क्रूर ग्रहे अध्यास करेला होय, अथवा पात ने उपग्रहादिकवके हणायेलां होय तेवा समये अशुभ कार्य करवामां
वे बे. मूळ गाथामा "कूरवारे " अहीं च शब्द होवाथी क्रूर वारमां, फूर होरामां तथा क्रूर र एटले विष्टि विगेरेमां, ए रीते जाणवुं. अन्यत्र विपरीत जावं. एटले के
कार्यमा तिथि विगेरे सर्वे शुभ ज लेवानां बे. लग्न पण शुन ब वर्गवालु, शुभ ग्रहोए श्रध्यासित अशुभ ग्रहोए जोयेलुं लेवं. नक्षत्रो पण कार्यने अनुसारे चर, लघु, मृदु
ध्रुव तथा सौम्य ग्रहोए अध्यासित लेवानां बे. या कार्योमां लग्ननो कांई आग्रह नथी, केमके - "लग्नं विवाहे दीक्षायां प्रतिष्ठायां च शस्यते” “विवाहमां, दीक्षामां ने प्रतिष्ठामां लग्न लेवं शुन बे." एम श्रागल कहेवाना बे, परंतु जे श्रा उपरनां शुभ कामां पण लग्ननो श्रादर करवा इडे बे, तेमने माटे जा (त्रीजा) विमर्शमां मौंजीite रंनना धान पर्यंतनां कार्योंमां तथा आवता ( चोथा ) विमर्शमां यात्रामां ने गृहनुं निवेशन तथा प्रवेश करवामां सूत्रकारे ज ( मूळ ग्रंथकारे ज ) लग्ननुं बळ सेवानुं कह्युं बे, अने जे कार्योंमां लग्ननुं बळ लेवानुं कह्युं नथी, ते मां या प्रमाणे जाणवुं.
प्रथम गर्भाधान विषे कहे बे. शुक्रेज्ययोर्बलवतोः शेषेष्वबलेषु पुंप्रसवयोगे । द्विपदे लग्ने शीर्षोदयिनि च गुरुशुक्रयुतदृष्टे ॥ १ ॥ या त्रिकोणकेन्द्रस्थितयोरनयोः स्वजन्मलग्ने वा । नोपचये चन्द्रे ऋतौ सुतार्थी जेनार्याम् ॥ २ ॥
शुक्र ाने गुरु: बळवान् होय, बीजा ग्रहो बळवान् न होय, पुंप्रसव नामनो योग होय, लग्न बे पादनुं ( मिथुन कन्या तुला धन कुंन ) तथा शीर्षोदयी (मीन) होय अने गुरु तथा शुक्र सहित होय अथवा गुरु ने शुक्र देखता होय अथवा गुरु ने शुक्र त्रिकोण के केन्द्रमा रह्या होय अथवा पोताना जन्मना लग्नमां रह्या होय, छाने चंद्र लग्नमां के उपचयस्थानमा रह्यो होय त्यारे पुत्रनार्थी पुरुषे ऋतुना दिवसोमां (प्रथमना चार दिवस वर्जीने ) स्त्री प्रत्ये गमन कर.
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पुंप्रसव नामनो योग जातकमां या प्रमाणे कह्यो बे.विषमर्दों विषमनवांशसंस्थिता गुरुशशांकलग्नार्काः । पुंजन्मकराः समनेषु योषितां समनवांशगताः ॥ १ ॥
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