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॥ श्रारंसिद्धि॥ कोइ आचार्य आ प्रमाणे कहे ."ब्रह्महत्याकरः पाणौ यघा मातुलघातकः।। गुह्यजातो धनं हन्यादृष्यत्वे च सुखी नवेत् ॥१॥ न जीवेषामजंघायां पांथो वा जायते नरः। दक्षिणस्यां तु जंघायां जातकः स्यान्महाधनी ॥२॥
कृबाजीवति वांमेऽहो दक्षिणे धनपुण्यवान् ॥' "मूळ नक्षत्रनी हाथनी घमीमां उत्पन्न भयो होय तो ब्रह्महत्या करनार थाय, अपवा मामानो घात करे, गुह्य स्थाननी घमीमां जन्म्यो होय तो धननो नाश करे अने वृद्धपणामां सुखी थाय, वाम ( माबी ) जंघानी घमीमां जन्म्यो होय तो जीवे नहीं अने जीवे तो पंथिक थाय, जमणी जंघानी घमीमां जन्म्यो होय तो महा धनवान् थाय, माबा पगनी घमीमां जन्म्यो होय तो महा कष्टे जीवे, अने जमणा पगनी धमीमां जन्म्यो होय तो धनवान् तथा पुण्यवान् थाय.”
केटलाएक मूळने वृक्षरूपे कहे , ते था प्रमाणे."पात् १ स्तंब २ नि ३ शाखा ४ दल ५ कुसुम ६ फले ७ स्युः शिखायां च घट्यो , मूलमोवोर्षि ४ सप्ताष्टक दशक १० नवे एवं ५ ग ६ रुष ११ प्रमाणाः। मूला १ थे २ञातृ ३ मातः पयति । पतति ५ प्रौढमंत्री ६ नृपश्च , स्यादेतासु प्रसूतः श्रयति कृशतरं चायुरेतचिखायाम् ॥१॥" .
“मूळ वृक्षना मूळमां । घमी मूकवी, थममां , गलमां , शाखामा १०, पत्रमा ए, पुष्पमां ५, फळमां ६, तथा शिखा (टोच) उपर ११ घमी मूकवी. या घमीमां जन्मेलानुं फळ अनुक्रमे था प्रमाणे-मूळनो नाश करे १, अर्थनो नाश करे २, लाइनो नाश करे ३, मातानो नाश करे , पोते नाश पामे ५, मोटो मंत्री थाय ६, राजा थाय , अने शिखामां नत्र होय तो अल्पायु थाय ७.” केटलाक श्राचार्यों कहे जे के शिखामां नक्षत्र होय तो मोटा आयुष्यवाळो थाय.
मूळ वृदनी स्थापना.
मूळपात थके
अर्थहानि गले
व्रातृनाश शाखाए
मातृनाश मरण मंत्री थाय
राज्यप्राप्ति शिखए
अपायु
पत्रे
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