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________________ १२२ ॥ श्रारंसिधि॥ अर्थ-मूळना पहेला पादमां वाळक उत्पन्न थाय तो पितानो नाश याय, वीजामां जन्मे तो मातानो नाश थाय, त्रीजामां जन्मे तो व्यनो नाश थाय अने चोथामां जन्मे तो सुख थाय. अश्लेपामां बाळक जन्मे तो तेनुं उत्क्रमथी फळ जाणवू, एटले के अश्लेषाना पहेला पादमां जन्मे तो सुख श्राय, बीजामां जन्मे तो ऽव्यनो नाश, त्रीजामां मातानो नाश अने चोथा पादमां जन्मे तो पितानो नाश थाय. वराह तो मूळना चोथा पादमां जन्मेला बाळकनुं फळ आ प्रमाणे कहे जे. "क्षेत्राधिपसंदृष्टे शशिनी नृपस्तत्सुहृनिरर्थपतिः।। जेष्काणांशकपैर्वा प्रायः सौम्यैः शुभं नान्यैः ॥ १॥" "श्रा तात्कालिक जन्मलग्नमां विचारवान बे.-क्षेत्राधिपे देखेला चंजमां एटले के ते वखते (जन्मसमये) जे राशिमां चंड होय ते राशिनो स्वामी जो चंधने जोतो होय तो मूळना चोथा पादमां जन्मेलो बाळक राजा प्राय अने ते राशिना मित्रोए ते चंजने जोयो होय तो धनपति थाय तथा चंजे आक्रमण करेला प्रेष्काणनो अथवा नवांशनो स्वामी जो सौम्य होय अने ते चंजने जोतो होय तो ते शुक्ल ने अने अन्य एटले क्रूर स्वामी जोतो होय तो अशुन बे." केटलाक श्राचार्यो कहे जे के"मूलस्यांहिचतुष्के क्रमेण पशुनाशिनी १ सुखकरी च । पितृपक्ष्मथ पयति ३ मातुलपदं च ४ जाता स्त्री ॥१॥" "मूळना पहेला पादमा उत्पन्न थयेली कन्या पशुनो नाश करे ने, वीजा पादमां जन्मी होय तो सुख करनारी थाय बे, त्रीजा पादमां जन्मी होय तो पिताना पक्ष्नो नाश थाय ने श्रने चोथा पादमां जन्मी होय तो माताना पहनो नाश श्राय ." "मूले जातोऽधमः स्यान्ना स्त्री तु पुण्यवती नवेत् । __ ज्येप्रा मघा विपरीताऽश्लेषा तज्नयेऽधमा ॥२॥" "मूळमां जन्मेलो पुरुष अधम श्राय , अने स्त्री जन्मी होय तो ते पुण्यवती थाय जे, ज्येष्ठा अने मघामां जन्मे तो तेथी विपरीत थाय ने, एटले के पुरुप जन्मे तो पुण्यवान् श्रने स्त्री जन्मे तो अधम थाय ने, थने अश्लेषामां जन्मे तो बन्ने अधम थाय बे." "तृतीया दशमी कृष्णा शनिन्नौमझसंयुता। शुक्तचतुर्दशी मूलजातः संहरते कुलम् ॥ ३॥" "शनि, मंगळ अने बुधवारे करीने सहित कृष्णपक्षनी त्रीज के दशम होय श्रश्रया शुक्लपक्षनी चौदश होय ते दिवसे मूळ नक्षत्र होय तेमां उत्पन्न अयेतो पुरुष कुळनो क्षय करे ." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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