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२०१५
॥हितीयो विमर्शः॥
ताराउनी स्थापना. जन्म | संपत् विपत् क्षमा यमा साधना निधना मैत्री । परममैत्री कमे संपत् विपत् क्षमा यमा साधना निधना। मैत्री | परममैत्री १३ १४
१७ आधान संपत् विपत् क्षमा यमा साधना निधना मैत्री | परममैत्री १५ - २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ । ५७
श्रा तारामा चोथी चोश्री, बनी बनी अने नवमी नवमी तारा श्रेष्ठ बे. ते विषे लन कहे ने के___"शदं न्यूनं तिथिyना पानायोऽपि चाष्टमः।
तत्सर्व शमयेत्तारा षट्चतुर्थनवस्थिताः ॥१॥" "नक्षत्र न्यून एटले अशुल होय, तिथि पण न्यून होय अने चंड पण आठमो (अशुन ) होय, तोपण बची, चोथी अने नवमी तारा होय तो ते सर्वने समावी दे बे-दबावी दे बे."
पहेली, बीजी अने आग्मी ए त्रण त्रण तारा मध्यम , अने त्रीजी, पांचमी, तथा सातमी ए त्रण त्रण तारा अधम डे ते तो पूर्वे कडं ज .
हवे ते ताराऊनो विशेष कहे जे.जन्माधानान्वितास्तिस्त्रस्तास्त्यजेत्दौरयात्रयोः। __ शुक्लेऽप्यासूस्थिते रोगे दीर्घक्लेशोऽथवा मृतिः ॥ ४ ॥
अर्थ-जन्म अने श्राधान सहित ते त्रण त्रण (त्रीजी, पांचमी अने सातमी) तारा दौर तथा यात्रामा तजवा योग्य बे. शुक्लपक्षमां पण था ताराउने विषे रोग उत्पन्न भयो होय तो चिरकाळ सुधी क्लेश रहे , अथवा मरण थाय बे.
त्रण त्रण एटले दरेक टळनी त्रीजी त्रीजी, पांचमी पांचमी अने सातमी सातमी समजवी. अर्थात् नव जाणवी. वळी खल्ल कहे डे के
"यात्रायुधविवाहेषु जन्मतारा न शोजना। शुनाऽन्यशुजकार्येषु प्रवेशे च विशेषतः॥१॥ जन्मवदाधानं कर्मसु शस्तेषु शस्तमेव स्यात् ।
यञ्च न जन्मनि कार्य विवर्जनीयं तदाधाने ॥२॥" "यात्रा, युद्ध श्रने विवाहमा जन्मनी तारा सारी नथी. वीजां शुल कार्यमां ते जन्म रा शुल , अने प्रवेशमां तो विशेष शुज ने (१). जन्म तारानी जेवी आधान तारा
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