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॥ द्वितीय विमर्शः ॥
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परम उच्चनो तथा परम नीचनो समय न जावो, परंतु वक्र गतिवाळा तथा अतिचारवाळा ग्रहोनी गळ कहेवाशे ते रीते स्पष्टता कर्या पक्षी उपर कहेला श्रंशो प्रमाणे उच्च नीचनी जावना करवी. या कहेलो समय तो सहज गतिवाळा ग्रहोने माटे ज समजवो. ग्रहोना उच्च नीचपणानुं फळ या प्रमाणे बे. - "इक्को जइ नचत्थो हवइ गहो उन्नरं परं कुणइ । किं पुण वे तिनि गहा कुति को इत्थ संदेहो ॥ १ ॥”
"जो कदाच एक पण ग्रह उच्च स्थाने रह्यो होय तो परम उन्नतिने करे बे, तो पछी उच्च स्थाने रहेला वे ऋण ग्रहो परम उन्नति करे तेमां शो संदेह ?" जन्मने विषे उच्च ग्रहनुं फळ या प्रमाणे बे. -
“ज्युञ्चैर्नृपः पञ्च निरर्द्धचक्री चक्री च षमुच्चैर्मुनिनि 9 स्तथाईन् ।”
" जन्मसमये त्रण ग्रह उच्च होय तो ते राजा थाय, पांच ग्रह उच्च होय तो वासुदेव थाय, व उच्च होय तो चक्रवर्ती थाय अने सात ग्रह उच्चना होय तो अरिहंत ( तीर्थंकर ) थाय." वळी कह्युं वे के
" त्रिनिनीचैर्भवेद्दास स्त्रि निरुच्चैर्नराधिपः । त्रिभिः स्वस्थानमंत्री त्रिनिरस्तमितैर्जयः ॥ १ ॥ धं दिगंबरं मूर्ख पर पिंकोपजीविनम् । कुर्यातामति नीचस्थौ पुरुषं चन्द्रजास्करौ ॥ २ ॥”
"जेना जन्मसमये त्रण ग्रह नीचना होय तो ते दास थाय बे, छाने त्रण ग्रह उच्चना होय तो ते राजा थाय बे. त्रण ग्रहो स्वस्थाने रह्या होय तो ते मंत्री थाय बे, अने त्रण ग्रह अस्त पाया होय तो ते जम थाय बे. (१) चंद्र ने सूर्य जो नीच स्थाने रह्या होय तो ते पुरुषने अंध, दिगंबर ( वस्त्र रहित - गरीब ), मूर्ख ने निक्षावृत्तिथी आजीविका करनार करे बे. २. "
उपर मूळ श्लोकमा जे त्रिकोण संज्ञा श्रापी बे, ते मूळ त्रिकोण पण कवाय a. त्रिकोनुं फळ ए बे जे " त्रिकोणमा रहेला ग्रहो उच्च ग्रहना जेवुं ज अथवा तेथी कांक न्यून फळ श्रापनारा बे." एम पाकश्री ग्रंथमां कह्युं छे. प्रश्न शतक वृत्तिमां त्रिकोण विगेरेने त्रिंशांनी स्पष्टतावरे या प्रमाणे कह्या बे. - “ सिंह राशिमां वीश त्रिंशांशो त्रिकोण ने बाकीना दश त्रिंशांश सूर्यनुं गृह ( घर - स्थान ) बे. वृषभ राशिमां बे त्रिंशांशी उच्च बे, त्रीजो परम उच्च बे, अने बाकीना चंद्रनुं त्रिकोण बे. मेषमां बार त्रिंशांशो त्रिकोण बे, बाकीना शो मंगळनुं गृह बे. कन्यामां चौद त्रिंशांशो उच्चना बे, पंदरमो परम उच्च बे, तेनी पबीना पांच त्रिकोण बे ने बाकीना दश बुधनुं गृह
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