SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव जीवन की दुर्लभता श्रमण भगवान महावीर से एक श्रद्धालु ने पूछा मानव अपनी सांसारिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए देवताओं को मनाते है, तो क्या देवता बड़े सुखी होते है। उनकी कोई इच्छाएं नहीं होती? भगवान ने कहा यह सत्य नहीं है, देवता भी मानव जीवन पाने के लिए तरसते है, उनके पास एश्वर्य का भंडार है फिर भी उन्हें मानव जीवन की प्यास है। वे देवलोक में रहकर भी यही कामना करते हैं कि हम अगले जन्म में मानव जीवन प्राप्त कर, धर्म श्रवण कर संयम में पराक्रम कर आत्मा कल्याण करें।' भगवान ने "दुल्लहे खलु माणुसे भवे" अर्थात् मनुष्य भव मिलना दुर्लभ है कहकर मनुष्य जन्म की दुर्लभता बताई है। मानव जीवन की दुर्लभता के 10 दृष्टान्त उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन में मिलते है। जैसे : 1. चक्रवर्ती के घर पर भोजन का दृष्टान्त 2. पाशक - जुआ खेलने के पासे का दृष्टान्त 3. धान्य - अनाजों का दृष्टान्त 4. धूत का दृष्टान्त 5.रत्नों का दृष्टान्त 6. स्वप्न का दृष्टान्त 7. चक्र का दृष्टान्त 8. कछुए का दृष्टान्त 9. युग (गाड़ी के जुहाड़े) का दृष्टान्त 10. परमाणु स्तम्भ का दृष्टान्त इनमें से कुछ दृष्टान्तों का उल्लेख यहां किया गया है। 1. परमाणु स्तम्भ का दृष्टान्त दसवां दृष्टान्त परमाणु स्तम्भ का है, जो इस प्रकार है - किसी एक कौतुकप्रिय देव ने काष्ट-स्तम्भ को चूर्ण कर बहुत बारीक बुरादा बना लिया, फिर उस चूर्ण को एक बड़ी नलिका में भरकर मेरुपर्वत पर चला गया। वहां मेरुपर्वत पर खड़ा होकर नलिका में खूब जोर से फूंक मारी। तेज पवन के झौंकों के साथ काष्ट स्तम्भ का महीन चर्ण दशों दिशाओं में दर तक बिखर गया। आकाश प्रदेश में व्याप्त हो गया। उस चूर्ण में बिखरे अणुओं को पुनः एकत्र करके स्तम्भ बनाना अत्यन्त कठिन है। फिर कोई मनुष्य उन समस्त परमाणुओं को इकट्ठा कर सकता है क्या? कदाचित् देव सहायता से वह ऐसा करने में समर्थ भी हो सकता है, किन्तु व्यर्थ में खोये हुए मनुष्य भव को पुनः प्राप्त करना महान दुर्लभ है। 2. युग का दृष्टान्त असंख्यात द्वीपों और समुद्रों के बाद असंख्यात योजन विस्तृत एवं हजार योजन गहरे अन्तिम समुद्र स्वयंभूरमण में कोई देव पूर्व दिशा की ओर गाड़ी का एक जुहाडा (युग) डाल दे तथा पश्चिम दिशा की ओर डाले। अब वह कीलिका वहां से बहती-बहती चली आए और बहते हए इस जहाडे से मिल जाए तथा वह कीलिका उस जुहाड़े के छेद में प्रविष्ट हो जाए, यह अत्यंत दुर्लभ है, कदाचित् वह भी हो सकता है, पर मनुष्य भव से च्युत हुए प्रमादी को पुनः मनुष्य भव की प्राप्ति अति दुर्लभ है। 0000000000000000000000000 Jain Education international For Private & Personal use only 0000 www.jainelibrary.org
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy