SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पत्थर पृथ्वीकाय चाँदी बिजली रत्न काष्ट अग्नि लाल मिट्टी कोयला अग्नि 2. अप्काय जीव :- जिन एकेन्द्रिय जीवों का शरीर ही जल या पानी हो, वे जीव अप्काय जीव है। सूक्ष्म, बादर पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा से अप्काय जीव के भी चार भेद हैं। कुआँ, तालाब, बावड़ी, भूमि का पानी, वर्षा आदि आकाश का पानी, हरे वृक्ष - तृण पर का पानी, वनस्पति पर का पानी, ओस, बर्फ, ओले आदि घनोदधि तथा हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से निर्मित जल आदि अप्काय जीवों के उदाहरण है। तेडकाय खार स्वर्ण 1. पृथ्वीकाय जीव :- जिनका शरीर ही पृथ्वी है, पृथ्वीकाय जीव है। किंतु एक बात ध्यान रखने योग्य है कि पृथ्वी पर आश्रय पानेवाले जीव पृथ्वीकाय जीव नहीं है। वे तो त्रसकाय जीव है। स्फटिक, मणि, रत्न, सुरमा, हिंगलु, परवाला, हरताल, धातु (सोना, चांदी, तांबा, सीसा, लोहा, काली मिट्टी रांगा, जस्ता आदि), पारा, मिट्टी, पाषाण, नमक, खार (क्षार), फिटकरी तथा खडी ( गीटरी) आदि पृथ्वीकाय जीव के उदाहरण है। पृथ्वीकाय जीवों के चार भेद हैं- 1, सूक्ष्म पृथ्वीकाय अपर्याप्त, 2. सूक्ष्म पृथ्वीकाय पर्याप्त 3. बादर पृथ्वीका अपर्याप्त 4. बादर पृथ्वीकाय पर्याप्त । विज्जु अर्गन ab ओस 4. वायुकाय जीव :- जिन स्थावर जीवों का शरीर ही वायु है, वे वायुकाय जीव हैं। इनके भी सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा से चार भेद हैं। इन जीवों के उदाहरण है- उद्भ्रामक या संवर्तक वायु अर्थात् ऊँची घूमती वायु, भूतालिया आदि, उत्कालिक वायु अर्थात् नीचे भूमि को स्पर्श करता हुआ वायु, गोलाकार घूमता वायु, आँधी आदि महावात, मंद-मंद सुहावनी चलने वाली शुद्ध वायु, गुंजार करती हुई वायु आदि। वायु उद्भ्रामक हरितणुं 3. ते काय जीवः- जिन स्थावर जीवों का शरीर ही अग्नि है, वे जीव तेउकाय जीव है। सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त की अपेक्षा से चार भेद हैं। उदाहरणार्थ - अंगारा, ज्वाला, भ्रमरा, भोभर, भट्टी, उल्का, अर्थात् आकाश में दिखाई देती अग्नि रेखाएँ, अशनी अर्थात् वज्र आदि अग्नि, कणिया अर्थात् गिरते हुए तारे जैसे अग्निकण तथा विद्युत बिजली आदि । 57 For Private & Personal Use Only उत्कालिक महावात सरोवर अपकाय बर्फ धनवात चक्राकार वायुकाय
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy