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________________ महावीर के इन्द्रभूति आदि ग्यारह गणधर थे। भगवान महावीर के पास दीक्षित होने से पूर्व उन सबके मन में एक-एक संदेह था। जिसका उल्लेख आवश्यकनिर्युक्ति की एक गाथा में मिलता है। जीवे कम्मे तज्जीव भूय तारिसय बंधमोक्खेय । देवा रइय या पुणे परलोय णेव्वाणे ।। इस गाथा में ग्यारह गणधरों के संशयों को क्रमशः इस प्रकार से बताया गया है। गणधर का नाम 1. इन्द्रभू 2. अग्निभूति 3. वायुभूति 4. व्यक्त 5. सुधर्मा 6. मंडितपुत्र 7. मौर्यपुत्र 8. अकम्पित संशय जीव है या नहीं ? कर्म है या नहीं? शरीर और जीव एक है या भिन्न ? पृथ्वी आदि भूत हैं या नहीं ? यहां जो जैसा है वह परलोक में भी वैसा होता है या नहीं ? बंध-मोक्ष है या नहीं ? देव है या नहीं ? नरक है या नहीं? 9. अचलभ्राता पुण्य-पाप या नहीं ? 10. मेतार्य परलोक है या नहीं ? 11. प्रभास मोक्ष है या नहीं ? भगवान को भस्म करने के लिए गौशालक द्वारा तेजोलेश्या का प्रयोग भगवान श्रावस्ती में विराजमान थे। उसी समय भगवान का स्वच्छन्दी आद्यशिष्य गोशालक अपने आपको 'मैं तीर्थंकर हूं' ऐसा सबको बताता था। गौतमस्वामीजी ने यह बात सुनकर भगवान से कही। भगवान ने प्रतिकार करते हुए कहा कि "आजीविक सम्प्रदाय का अगुआ मंखलीपुत्र गोशालक अष्टांग निमित्त का ज्ञान होने से कुछ भविष्य कथन कर सकता है। किंतु वह जिस पद की घोषणा करता है वह सर्वथा मिथ्या है। वह तो एक समय मेरी छद्मस्थ अवस्था में मेरा धर्म शिष्य था।" यह बात उपस्थित जनता ने सुनी, और वह गोशालक के कान तक पहुंची। वह अतिक्रुद्ध होकर बदला लेने के इरादे से अपने भिक्षुसंघ के साथ भगवान के पास आ पहुंचा। भगवान ने जानबूझकर उससे अपने साधुओं को दूर रहने के लिए कहा, किन्तु दो साधु भक्तिवश नहीं गये । गोशालक दूर खड़ा रहकर भगवान को लक्ष्य कर के चिल्ला कर कहने लगा । 'हे काश्यप ! तू मेरी निन्दा करके अवहेलना क्यों करता है ? तेरा वह शिष्य तो मर गया है, मैं तो दूसरा हूं ।' भगवान ने कहा- 'अभी तक तेरा सत्य को असत्य कहने का वक्र स्वभाव गया नहीं ?' यह सुनकर और अधिक क्रुद्ध हो वह बोला- हे काश्यप ! तूने मुझे छेड़कर एक शूल उत्पन्न कर लिया है। अब 38 -
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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