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________________ क्षत्रियकुण्ड नगर में विराजमान राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला के गर्भ में उसे स्थापित कर और त्रिशला के गर्भ को ले जाकर देवानन्दा की कुक्षि में रख आ इन्द्र की आज्ञा पाते ही हरिणैगमेषी देव बिजली से भी तेज गति से मध्यरात्रि में ब्राह्मणकुण्ड नगर में पहुंचकर ऋषभदेव की हवेली में प्रविष्ट हो, उसकी निद्राधीन पत्नि देवानन्दा की कुक्षि से दैवी शक्ति द्वारा गर्भ को करकमल में लेकर, आकाश मार्ग से गया और पास में ही स्थित क्षत्रियकुण्ड नगर में आता है तथा ज्ञातक्षत्रिय, काश्यपगोत्रीय और 'ज्ञातृकुल 'के राजा सिद्धार्थ के राजभवन में जाकर, तन्द्राग्रस्त रानी त्रिशला के शयनागार में आकर, पहले उसकी कुक्षि में स्थित पुत्री रूप गर्भ को बाहर निकालकर वहां भगवान के गर्भ को स्थापित करता है। और पुत्रीरूप गर्भ को ले जाकर सोई हुई देवानन्दा के गर्भ में रख देता है। मरीचि के भव में किये गये कुल मद के फल-स्वरूप अन्तिम भव में भी ब्राह्मणकुल में भगवान को अवतरित होना पड़ा। इसलिये कुल, सम्पत्ति अथवा विद्या, कला आदि का कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। क्षत्रियाणी त्रिशला रानी को चौदह महास्वप्नों के दर्शन त्रिशला के गर्भाशय से भगवान का गर्भ स्थापित होने के बाद माता त्रिशला मध्य रात्रि में 1. सिंह 2. हाथी 3. वृषभ 4. लक्ष्मी देवी 5. पुष्पमाला युगल 6. चन्द्र 7. सूर्य 8. ध्वजा 9. पूर्ण कलश 10. पद्म सरोवर 11. क्षीर सागर 12. विमान (भुवन) 13. रत्नों की राशि 14. निर्धूम अग्नि इन चौदह महास्वप्नों को देखती है। प्रथम माता देवानन्दा ने तन्द्रावस्था में चौदह महास्वप्न देखे। : स्पष्टीकरण 1. प्रथम तीर्थंकर की माता पहले स्वप्न में वृषभ, अन्तिम तीर्थंकर की माता सिंह और शेष बाईस तीर्थंकरों की माता हाथी देखती है। 2. जब तीर्थंकर का जीव देवलोक से च्यवता है तो माता स्वप्न में विमान देखती है और जब नरक से च्यवता है तो भुवन देखती है। 3. तीर्थंकर या चक्रवर्ती की माता चौदह स्वप्न, वासुदेव की माता सात स्वप्न, बलदेव की माता चार और मांडलिक की माता एक स्वत्न देखती है। जन्म कल्याणक का उत्सव (दिक्कुमारिकोत्सव ) कालचक्र का चौथा आरा दुषम-सुषमा चल रहा था। पंचम आरा शुरू होने में 74 वर्ष, 11 महीने, साढ़े 7 दिन बाकी थे । ग्रीष्म ऋतु थी । चेत्र सुदी तेरस के दिन 9 मास साढ़े 7 दिन पूरे होने पर मध्यरात्रि की बेला में क्षत्रियकुण्ड ग्राम में माता त्रिशला की कुक्षि से भगवान महावीर का जन्म हुआ। शाश्वतनियमानुसार जन्म के पुण्य प्रभाव से प्रसूति - कार्य की अधिकारिणी 56 दिक्कुमारिका देवियों के सिंहासन डोलने पर विशिष्ट ज्ञान से भगवान के जन्मप्रसंग को जानकर अपना कर्तव्य पालन करने के लिये वे देवियां जन्म की रात्रि में ही देवी शक्ति से शीघ्र ही जन्मस्थान पर आती हैं और 25 For Private & Personal Use Only
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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