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________________ 12. औपपातिक (उववाई) 13. राजप्रश्नीय (रायपसेणियं ) 14. जीवाभिगम (जीवाभिगमों) 15. प्रज्ञापना (पण्णवणा) 16. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (जम्बूद्वीवपण्णत्ती) 17. चन्द्रप्रज्ञप्ति (चंदपण्णत्ती) 18. सूर्यप्रज्ञप्ति (सूरपण्णत्ती) 19. निरयावलिका (णिरयावलियाओ) 20. कल्पावतंसिका (कप्पवडसियाओ) 21. पुष्पिका (पुप्फियाओ) 22. पुष्पचूलिका (पुप्फचूलियाओ) 23. वृष्णिदशा (वण्हीदसाओ) 24. चरण सत्तरी- मुनि द्वारा सतत् पालन करने योग्य सत्तर (70) नियम चरण सत्तरी है। 25. करण सत्तरी- मुनि द्वारा नियत समय पर पालन करने योग्य तथा ों की सुरक्षा करने वाले आचार संबंधी सत्तर (70) नियम करण सत्तरी है। इस प्रकार उपाध्यायजी के 25 गुण होते हैं। साधु महाराज के 27 गुण जो मोक्षमार्ग को साधने का प्रयत्न करें, सर्वविरति चारित्र लेकर सत्ताईस गुण युक्त हों, उसे साधु कहते हैं। साधु महाराज के 27 गुण हैं। 1 से 6 - 1. प्राणातिपात विरमण 2. मृषावाद विरमण 3. अदत्तादान विरमण 4. मैथुन विरमण 5. और परिग्रह विरमण ये पांच महाव्रत तथा 6. रात्रि भोजन का त्याग - इन छः व्रतों का पालन करें। 7 से 12 - 7. पृथ्वीकाय 8. अपकाय 9. तउकाय 10. वायकाय 11. वनस्पतिकाय और 12. त्रसकाय इन छः काय के जीवों की रक्षा करें। 13 से 17 - अपनी पांच इन्द्रियों के विषय-विकारों को रोके 18 से 27 - 18. लोभ निग्रह 19.क्षमा 20. चित्त की निर्मलता 21. शुद्ध रीति से वस्त्रादि की पडिलेहणा 22. संयम योग से प्रवृत्ति अर्थात् पांच समिति और तीन गुप्ति का पालन करना एवं निद्रा, विकथा तथा अविवेक का त्याग करना, 23. चित्त को गलत विचारों से रोकना (अकुशल चित्त निरोध) 24. अकुशल वचन का निरोध 25. अकुशल काया का निरोध (कुमार्ग में जाने से रोकना) 26. सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास आदि बाईस परिषहों को सहन करना और 27. मरणादि उपसर्गों को सहन करना। इस प्रकार साधु उपर्युक्त सत्ताईस गुणों का पालन करें। इस प्रकार : अरिहंत के 12, सिद्ध के 8, आचार्य के 36, उपाध्याय के 25 तथा साधु के 27 गुण, इन सब को मिलाने से पंच परमेष्ठि के 108 गुण हुए। नवकारवाली (माला) के 108 मनके रखने का एक हेतु यह भी है कि इससे नवकार मंत्र का जाप करते हुए पंचपरमेष्ठि के 108 गुणों का स्मरण, मनन, चिंतन किया जाए। 95 For Private & Personal Use Only 22-00001 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002764
Book TitleJain Dharma Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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