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________________ १३६ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । नासिकोदरौ-ण्ठात् |२|४|३९|| नास्तिका-कम् |६|४|६६|| निंसनिक्ष वा |२| ३|८४|| निकटपाठस्य | ३|१|१४०॥ निकादिषु वसति | ६ | ४|७७|| निगवादेर्नाम्नि | ५ | १|६१॥ निघोद्धसंघो-न्नम् |५|३|३६|| निजां शित्येत् |४|१|५७|| नित्यं ञञिनोऽणू | ७|३|५८|| नित्यं ण: पन्थ |६|४|८९|| नित्यं प्रतिनापे | ३|१|३७|| नित्यं हस्ते - हे | ३ | १|१५।। नित्यदिद् - स्वः | १|४|४३|| नित्यमन्वादेशे |२| १ | ३१ || नित्यवैरस्य | ३|१|१४१|| नि दीर्घः | १|४|८५ || निनद्या: - ले |२|३|२०|| निन्दहिंस-रात् ।५।२।६८|| निन्द्यं कुत्सनै - द्यैः | ३|१|१००|| निन्द्ये पाशप् |७|३|४|| निन्द्ये व्याप्या - यः | ५ | १|१५९ || निपुणेन चार्चायाम् | २|२| १०३ || निप्राजः शक्ये | ४|१|११६ ॥ निप्रेभ्यो नः | २|२|१५|| निमिल्यादिमेङ-के |५|४|४६|| निमूलात्कषः |५|४|६२|| निय आम् | १|४|५१|| नियश्चानुपसर्गाद्वा | ५|३|६०|| नियुक्तं दीयते | ६ |४| ७०॥ निरभेः पूल्वः |५|३|२१|| निरभ्यनोश्च नि | २|३|५०|| निर्गो देशे | ५ | १ | १३३॥ निर्दुःसुवे:-ते: ।२|३|५६|| निर्दुर्बहि-राम् |२|३|९|| निर्दुस्सोः-म्नाम् |२|३|३१|| निर्नेः स्फुरस्फुलोः | २|३|५३|| निर्वाणमवाते |४| २|७९ || निर्विण्णः | २ | ३ |८९॥ निर्वृत्ते |६|४|१०५ || निर्वृत्तेऽक्षद्यूतादेः ||६|४|२०|| नवा | १|४|८९|| निवासाच्चरणेऽणू |६|३|६५ || निवासादूरभवे-म्नि |६|३|६९|| निविशः | ३ | ३|२४ ॥ निविस्वन्ववात् | ४|४|८|| निशाप्रदोषात् ।६।३।८३॥ निषेधेऽलंखल्वोः क्त्वा |५|४|४४|| निष्कादेः-स्रात् |७|२|५७|| ७२१३९॥ निष्कुलानि - निष्कुषः | ४|४|३९|| निष्प्रवाणिः | ७|३|१८१ ।। निष्प्रा-नस्य |२| ३|६६|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002758
Book TitleSiddhhemchandrashabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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