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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना अब रही भद्रबाहु के पास मौर्य चंद्रगुप्त के दीक्षा लेने की बात, सो यह बात भी दंतकथा से बढ़कर अधिक मूल्य की नहीं है । इस कथा का श्वेतांबर जैन साहित्य में तो उल्लेख नहीं है, पर प्राचीन दिगंबर जैन साहित्य भी इसका समर्थन नहीं करता । इस कथा का दिगंबरीय ग्रंथों में जिस ढंग से वर्णन किया है उसे देखकर यही कहना पड़ता है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु और मौर्य चंद्रगुप्त का इसके साथ कुछ भी संबंध नहीं है । प्राचीन लेखों में इस कथा के नायक भद्रबाहु को कहीं भी श्रुतकेवली नहीं लिखा है, प्रत्युत उन्हें निमित्तवेत्ता लिखा है, जो कि दिगंबरों के ही कथनानुसार दूसरे ज्योतिषी भद्रबाहु हो सकते हैं । तीसरे अवतरण में भद्रबाहु के मुख से कहलाया है कि 'अब से केवल ज्ञान का विच्छेद होगा' परंतु जैन सिद्धांत में जंबूस्वामी के साथ ही केवल ज्ञान का विच्छेद होना लिखा है । इसलिये भद्रबाहु के मुख से केवल ज्ञान का विच्छेद कहलाना अर्थशून्य कल्पना है । ७१ ! चौथे अवतरण में कहा है कि 'देवद्रव्य खानेवाले साधु होंगे । वे लोभ से मालारोपण उपधान आदि अनेक बातें प्रकाशित करेंगे ।' इस उक्ति से स्पष्ट होता है कि यह कथन चैत्यवास की उत्पत्ति के बाद की स्थिति की सूचना देता है । पाँचवें अवतरण में कहा गया है कि 'अब से धर्म वैश्य जाति के हाथ में जायगा । बनिए अनेक मार्ग ग्रहण करेंगे ।' इस वाक्य से मालूम होता है कि जैन धर्म के जाति-धर्म बनने के बाद का यह उल्लेख है । छठे अवतरण में कहा गया है कि 'क्षत्रिय कुमार राज्यभ्रष्ट होंगे और सब यवनों के हाथ में चला जायगा ।' इससे भी यह ध्वनित होता है कि हिंदुस्तान में मुसलमानों की सत्ता होने के बाद की यह रचना होनी चाहिए । सातवें अवतरण में चंद्रगुप्त के दीक्षा लेने की बात है, जो कि श्वेतांबर ग्रंथों के विरुद्ध है । परिशिष्ट पर्व आदि में चंद्रगुप्त के जैन होने की बात अवश्य है, पर वहाँ गृहस्थधर्म में रहते हुए उसका अंतकाल होना लिखा है । दीक्षा लेने की कोई बात नहीं है । ५२. श्रवण बेल्गोल के चंद्रगिरि पर्वत पर एक शिलालेख में भद्रबाहु और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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