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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना ४७ पुराणकार प्रद्योतों के समय से ही धार्मिकता की अपेक्षा से राजाओं की शिकायत करते मालूम होते हैं । प्रद्योत के लिये तो वे स्पष्ट कहते हैं कि-'वह सामंतों से पूजित होगा, धर्म से नहीं ।' "स वै प्रणतसामन्तो भविष्यो न च धर्मतः ।" - मत्स्यपुराण, अ० २७२ । शैशुनाग वंश के मगध राजाओं को भी पुराणकार 'क्षत्रबंधु' अर्थात् पतित क्षत्रिय कहते हैं "शिशुनागा भविष्यंति राजानः क्षत्रबंधवः ॥१२॥" __-मत्स्यपुराण, अ० २७२। "शिशुनागा दशैवैते राजानः क्षत्रबंधवः ।" -ब्र० म० भा० उ० पा० ३ अ० ७४ । वायुपुराण में तो शैशुनागों के अतिरिक्त दूसरे राजाओं को भी पतित क्षत्रिय कहा है । देखो नीचे का श्लोक "शैशुनागा भविष्यति तावत्कालं नृपाः परे । एतैः सार्द्ध भविष्यंति, राजानः क्षत्रबांधवाः ॥३१६॥" -वायु० पु० उ० अ० ३७ । शैशुनागों के पीछे भारतवर्ष का राजमुकुट नंद के शिर चढ़ता है । नंद को तो पुराणकार शूद्रा का पुत्र कहते ही हैं, परंतु इसके साथ ही वे भविष्य के राजाओं की जाति का भी खुलासा कर देते हैं कि 'तब से शूद्र राजा होंगे ।' पुराणों के इन उल्लेखों का यदि कोई कारण हो सकता है तो यही कि प्रद्योत, शैशुनाग, नंद और मौर्यों के समय में ब्राह्मणों को राज्याश्रय नहीं मिलता था । प्रद्योत और शैशुनाग राजा जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, और लगभग यही बात नंद और मौर्यों के संबंध में भी थी । इस कारण से ब्राह्मण साम्राज्य कमजोर हो चला था । ठीक इसी समय में शुंग पुष्यमित्र ने मगध की राजगद्दी अपने अधिकार में की और चिर काल से राज्याश्रय से वंचित वैदिक धर्म की एकदम उन्नति करने के लिये उसने अपनी राजशक्ति का यथाशक्य प्रयोग किया । बौद्धों के मठ-मंदिर तोड़े, बौद्ध जैन और इतरधर्मी साधुओं के वेष छीन छीन उन्हें ब्राह्मण धर्म में जोड़ा । जिन्होंने न माना उनके शिर उड़ाए, और अश्वमेधादि यज्ञ करके कुछ समय से विस्मृत हुई वैदिक क्रियाओं का पुनरुद्धार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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