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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
गोशालक की तैजस शक्ति-जनित महावीर की सख्त बीमारी, जमालि का महावीर से विरुद्ध होकर जुदा होना, जमालि के ५०० शिष्यों में दो मत होकर आधे का जमालि को छोड़कर महावीर के पास जाना,१३ जमालि का महावीर के पास जाकर आत्मश्लाघा करना और इंद्रभूति गौतम का उसके
बौद्ध लेखकों ने निर्ग्रन्थों के विषय में जो लिखा है कि वे एक दूसरे के साथ लड़ते भिड़ते हैं, वह इसी विवाद की विकृत सूचना है।
१३. जमालि की नवीन मतकल्पना को कितनेक साधुओं ने तो स्वीकार कर लिया पर कितनेकों ने उसे स्वीकार नहीं किया । जिन्होंने जमालि के नए मत को मंजूर नहीं किया था वे जमालि को छोड़कर महावीर के पास चले गए थे । इस विषय का भगवती का उल्लेख इस प्रकार है
"तएणं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवमाइक्खमाणस्स० जाव परूवेमाणस्स अत्थेगइया समणा णिग्गंथा एयमळू सद्दहंति पत्तियंति रोयंति अत्थेगइया समणा णिग्गंथा एयमढं णो सद्दहति णो पत्तियंति णो रोयंति, तत्थ णं जे समणा णिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमठु सद्दहति पत्तियंति रोयंति ते णं जमालि चेव अणगारं उपसंपज्जिता णं विहरंति । तत्थ णं जे ते समणा णिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमठु णो सद्दहति णो पत्तियंति णो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमइत्ता पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे जेणेव चंपाणयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं वंदंति णमंसंति वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ता णं विहरति ।"
--भगवती ९-३३ । इसी संबंध में आवश्यक नियुक्तिकार ने लिखा है कि आखिर में ढंक श्रावक के समझाने पर जमालीमतावलंबी सब साधु-साध्वी जमालि को छोड़कर महावीर के पास चले गए थे, इस विषय की संग्रह गाथा यह है
"जिट्ठा सुदंसण जमालिणोज्ज सावत्थितिदुगुज्जाणे । पंचसया य सहस्सं ढंकेण जमालि मोत्तूणम् ॥२३०७॥"
खुद जमालि के लिये भगवती में लिखा है कि जमालि मिथ्या आग्रह और असत्कल्पनाओं से अपनी आत्मा को और दूसरों को बहुकाता हुआ बहुत वर्षों तक श्रामण्य पालता रहा । (बहूहिं असब्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ)- भगवती ९-३३ ।
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