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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
पर महावीर के मुख्य शिष्य इंद्रभूति गौतम गोशालक की सर्वज्ञता के संबंध में महावीर से प्रश्न करते हैं, जिसके उत्तर में महावीर गोशालक की सर्वज्ञता का खुल्लमखुल्ला खंडन करते हैं । बात गोशालक के कानों तक पहुँचती है और वह अपने भिक्षुसंघ के साथ महावीर के पास आकर अपनी तरफ से सफाई देता है पर महावीर उसकी एक नहीं सुनते । गोशालक क्रुद्ध होकर महावीर को जलाकर भस्म कर देने के लिये अपनी तेजः शक्ति का प्रयोग करता है, पर इसमें वह सफल नहीं होता । उसकी तैजसशक्ति महावीर के चारों ओर चक्कर लगाकर पीछे उसी के शरीर में प्रवेश करती है । इससे गोशालक व्याकुल होता है और झुंझलाकर महावीर को कहता है " मृत्युप्रार्थी काश्यप मेरे इस तपस्तेज से ग्रस्त हो छः मास में ही तू पित्तज्वर से मर
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जायगा I
इस आक्रोश के उत्तर में महावीर उसे कहते हैं- " गोशाल ! मैं तेरी इस शक्ति से नहीं मरूँगा, मैं अभी १६ वर्ष तक इस पृथ्वी पर विचरूँगा, पर गोशालक ! तू खुद ही अपनी इस तेजोलेश्या से दग्ध होकर आज से सात दिन के भीतर मरणवश होगा ।"" इसके बाद गोशालक बीमार हो जाता है और सातवें दिन वह सख्त बीमार होकर सान्निपातिक अवस्था के निकट पहुँच जाता है । उस अवस्था में गोशालक अपने शिष्यों को कुछ नई बातें कहता है जिनमें आठ चरिमों की प्ररूपणा मुख्य है । इन आठ चरिमों में गोशालक "महाशिलाकंटक" युद्ध को सातवें नम्बर पर रखता है ।
४. भगवती के मूल शब्द ये हैं
"तुमं णं आउसो कासवा ! ममं तवेणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कं तीए छउमत्थे चेव कालं करेस्ससि ।"
- भगवती श० १५, ६७८-६७९ ।
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५. मूल शब्द इस प्रकार हैं
"नो खलु अहं गोसाला तव तवेणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं जाव कालं करेस्सामि, अहन्नं अन्नाई सोलसवासाइं जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि, तुमं णं गोशाला अप्पणा चेव सएणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो सत्त रत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे जाव छडमत्थे चेव कालं करेस्ससि" ।
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- भगवती श० १५, ६७८-६७९ ।
६. आठ चरिमों (अंतिम पदार्थों) के प्ररूपण संबंधी भगवती के शब्द इस प्रकार हैं
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