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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
अजातशत्रु से जिन तीर्थंकरों की मुलाकात हुई थी उनके वर्णन में पालिग्रंथ 'दीघनिकाय' में महावीर के संबंध में अजातशत्रु के अमात्य के मुख से इस प्रकार वर्णन कराया गया है
" अन्नतरो पि खो राजामच्चो राजानं मागधं अजातसत्तुं वेदेहीपुत्तं एतदवोच 'अयं देव निगंठो नातपुत्तो संघी चेव गणी च गणाचारियो च जातो यसस्सी तित्थकरो साधुसंमतो बहुजनस्स रत्तस्सू (?) चिरपव्वजितो अद्धगतो वयो अनुपत्ता ति ।"
अर्थात् 'उनमें से एक मंत्री वैदेहीपुत्र मगधपति राजा अजातशत्रु से बोला- महाराज ! ये निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र आ गए, ये संघ और गण के मालिक हैं, गण के आचार्य और प्रख्यात कीर्तिमान् तीर्थंकर हैं, सज्जनमान्य और बहुत लोगों के श्रद्धास्पद (?) होने के उपरांत ये चिरदीक्षित और अवस्था में अधेड़ हैं ।'
यदि यह मान लिया जाय कि उपर्युक्त तीर्थंकरों की मुलाकात का प्रसंग अजातशत्रु के राज्य के प्रथम वर्ष में हुआ तो उस समय महात्मा बुद्ध की उम्र ७२ वर्ष से कम नहीं हो सकती, क्योंकि अजातशत्रु के राजत्वकाल के आठवें वर्ष में वे अस्सी वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए थे ।
इसी प्रसंग पर महावीर को " अर्धगतवयाः " लिखा है, इस उल्लेख से उस समय भगवान् महावीर की अवस्था ५० वर्ष के आसपास होने की सूचना मिलती है ।
" पुरे राजगृहाभिख्ये, बिम्बसारेण भूभुजा । पूज्यमानं जिनं दृष्ट्वा, स्थितं वेणुवनाश्रमे ॥२॥ मात्सर्यविषसंतप्ता मूर्खाः सर्वज्ञमानिनः । न सेहिरे तदुत्कर्षं, प्रकाशमिव कौशिकाः ॥३॥
मश्करी संजयी वैरैरजितः ककुदस्तथा । पूरणज्ञातिपुत्राद्या मूर्खाः क्षपणकाः परे ॥५॥"
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-अवदानकल्पलता, पल्लव १३, ४११
२. दी० नि० पी० टी० एस, भाग १, पृष्ठ ४८-४९ ।
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