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जैन काल-गणना विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा
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'उज्जयिनी के राजा संप्रति के कोई पुत्र नहीं था इसलिये उसके मरने पर वहाँ का राज्यासन अशोक के पुत्र तिष्यगुप्त के पुत्र बलमित्र और भानुमित्र नामक राजकुमारों को मिला ।
ये दोनों भाई जैन वर्ष के बाद उज्जयिनी के
स्वर्गवासी हुए ।
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धर्म के उपासक थे । ये वीर - निर्वाण से २९४ राज्य पर बैठे और निर्वाण से ३५४ वर्ष के बाद
इसके बाद बलमित्र का पुत्र नभोवाहन उज्जयिनी में राज्याभिषिक्त हुआ । नभोवाहन भी जैनधर्मी था । वह निर्वाण से तीन सौ चौरानबे वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ ।
उसके बाद नभोवाहन का पुत्र गर्दभिल्ल- जो गर्दभी विद्या जाननेवाला था - उज्जयिनी के राज्यासन पर बैठा ।"
इसी प्रसंग में कालकाचार्य का वृत्तांत, उनकी बहन सरस्वती साध्वी का गर्दभिल्ल द्वारा अपहार और लड़ाई करके साध्वी को छुड़ाने आदि का वृत्तांत दिया हुआ है जो अति प्रसिद्ध होने से यहाँ पर नहीं लिखा जाता है । हाँ, यहाँ पर एक बात विशेष है, सब चूर्णियों और कालक कथाओं में यह लिखा गया है कि कालक ने 'पारिसकुल में जाकर वहाँ के साहि अथवा शाखि नामधारी ९६ राजाओं को हिंदुस्तान में लाकर गर्दभिल्ल के ऊपर चढाई करवाई', तब इसमें इस प्रसंग में इतना ही कहा है कि 'सिंधु देश में सामंत नामक शक राजा राज्य करता था, उसके पास कालक गए और उसे उज्जयिनी पर चढ़ा लाए ।' इस लड़ाई में गर्दभिल्ल मारा जाता है, उज्जयिनी पर शक राजा अधिकार करता है और सरस्वती को फिर दीक्षा देकर कालक भरोच की तरफ विहार करते हैं। कालांतर में गर्दभिल्ल का पुत्र विक्रमादित्य शक राजा को जीतकर उज्जयिनी का राज्य अपने हाथ में कर लेता है, यह बात थेरावली के शब्दों में नीचे लिखी जाती है।
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"उसके बाद गर्दभिल्ल का पुत्र विक्रमार्क शक राजा को जीतकर महावीर - निर्वाण से चार सौ दस वर्ष बीतने पर उज्जयिनी के राज्यासन पर बैठा ।
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