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जैन काल-गणना-विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा
लेख से कलिंग चक्रवर्ती खारवेल का तो थोड़ा बहुत परिचय विद्वानों को अवश्य है, पर उसके वंश और उसकी संतति के विषय में अभी तक कुछ भी प्रामाणिक निर्णय नहीं हुआ था । हाथीगुंफा के लेख के "चेतवसवधनस" इस उल्लेख से कोई कोई विद्वान् खारवेल को " चैत्रवंशीय" समझते थे, तब कोई उसे " चेदिवंश" का राजा कहते थे । हमारे प्रस्तुत थेरावलीकार ने इस विषय को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है । थेरावली के लेखानुसार खारवेल न तो चैत्रवंश्य था और न चेदिवंश्य; वह तो "चेटवंश्य" था, क्योंकि वह वैशाली के प्रसिद्ध राजा चेटक के पुत्र कलिंगराज शोभनराय की वंश परंपरा में जन्मा था ।
अजातशत्रु के साथ की लड़ाई में चेटक के मरने पर उसका पुत्र शोभनराय वहाँ से भागकर किस प्रकार कलिंगराज के पास गया और कलिंग का राजा हुआ इत्यादि वृत्तांत थेरावली के शब्दों में ही नीचे लिख देते हैं। विद्वान् लोग देखेंगे कि कैसी अपूर्व घटना है ।
" वैशाली का राजा चेटक तीर्थंकर महावीर का उत्कृष्ट श्रमणोपासक था | चंपानगरी का अधिपति राजा कोणिक, जो कि चेटक का भानजा था, ( अन्य श्वेतांबर जैन संप्रदाय के ग्रंथों में कोणिक को चेटक का दोहिता लिखा है) वैशाली पर चढ़ आया और उसने लड़ाई में चेटक को हरा दिया । लड़ाई में हारने के बाद अन्न-जल का त्यागकर राजा चेटक स्वर्गवासी हुआ । चेटक का शोभनराय नाम का एक पुत्र वहाँ से (वैशाली नगरी से ) भागकर अपने श्वशुर कलिंगाधिपति सुलोचन की शरण में गया । सुलोचन के पुत्र नहीं था इसलिये अपने दामाद शोभनराय को कलिंग देश का राज्यासन देकर वह परलोकवासी हुआ ।
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भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद १८ वर्ष बीतने पर शोभनराय का कलिंग की राजधानी कनकपुर में राज्याभिषेक हुआ । शोभनराय जैन धर्म का उपासक था । वह कलिंग देश में तीर्थस्वरूप कुमारपर्वत पर यात्रा करके उत्कृष्ट श्रावक बन गया ।
शोभनराय के वंश में पाँचवी पीढ़ी में चंडराय नामक राजा हुआ
वीर- १२
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