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________________ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना निर्वाण-शक के अंतर के ६०५ वर्ष और ५ मास दिए हैं, इससे निश्चित है कि उक्त पयन्ने की वर्तमान गाथाओं में से ५२ वर्ष छूट गए हैं, और यह ५२ वर्ष की भूल "सट्ठिसयं" के स्थान "मट्ठिसयं" हो जाने का ही परिणाम हो सकती है । गर्दभिल्लों के १५२ वर्ष हम ऊपर देख चुके हैं कि प्रचलित गणना में मौर्यकाल में से ५२ वर्ष छूट गए हैं, पर पिछले लेखकों ने गर्दभिल्लों के १५२ वर्ष मानकर इस कमी को दूरकर वीर निर्वाण और शक का ६०५ वर्ष का अंतर ठीक कर लिया । इस संबंध में आचार्य मेरुतुंग निम्नलिखित गाथा देते हैं "विक्कमरज्जाणंतर, सतरसवासेहिं वच्छरपवित्ती । सेसं पुण पणतीससयं, विक्कमकालम्मि य पविट्ठ ॥" इसकी व्याख्या वे इस तरह करते हैं १४१ 'सप्तदशवर्षैर्विक्रमराज्यानंतरं वत्सरप्रवृत्तिः । कोऽर्थः ?, नभोवाहनराज्यात् १७ वर्षैर्विक्रमादित्यस्य राज्यम् । राज्यानंतरं च तदैव वत्सरप्रवृत्तिः । ततो द्विपंचाशदधिकशत (१५२) मध्यात् १७ वर्षेषु गतेषु शेषं पंचत्रिंशदधिकशतं (१३५) विक्रमकाले प्रविष्टम्" अर्थात् '१७ वर्षों में विक्रम राज्य के अनंतर संवत्सर चला, इसलिये १५२ में से १७ वर्ष पहले व्यतीत हो चुके थे और १३५ वर्ष विक्रम और शक के अंतर में प्रविष्ट हैं। इस तरह गर्दभिल्ल के राज्यारंभ से शक संवत्सर तक कुल १५२ वर्ष होते हैं।' गर्दभिल्लों के १५२ वर्ष सिद्ध करने के लिये मेरुतुंग को यह द्राविड़ीय प्राणायाम करना पड़ा है, क्योंकि किसी भी तरह उन्हें निर्वाण और शक के बीच ६०५ वर्षों का मेल मिलाना था, पर मेरी समझ में उनका यह अर्थ उक्त गाथा से उपस्थित नहीं हो सकता । गाथा के पूर्वार्द्ध का स्पष्ट और स्वाभाविक अर्थ तो यही है कि 'विक्रम राज्य के बाद १७ वर्षों में संवत्सर की उत्पत्ति हुई ।' राजत्वकालगणना के विवेचन में हम कह चुके हैं कि 'बलमित्र' ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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