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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
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सूचक भिन्न भिन्न अंक है । इससे एक बात स्पष्ट होती है, वह यह कि माथुरी वाचनानुयायी देवर्द्धिगणि और वालभी वाचनानुसारी कालकाचार्य एक ही समय में दो व्यक्ति थे, पर विशेषता यह है कि देवद्धि माथुरी थेरावली के ३२ वें पुरुष थे तब कालकाचार्य वालभी युगप्रधानावली के २७ वें युगप्रधान पुरुष थे। क्या आश्चर्य है, कालक के २७ वें पुरुष होने से ही इनके समकालीन देवद्धिगणि के संबंध में भी २७ वें पुरुष होने की प्रसिद्धि चल पड़ी हो ।
माथुरी युगप्रधानावली का क्रम ऊपर दिया जा चुका है, अब हम वालभी युगप्रधान थेरावली के देवद्धिगणि के समय तक के युगप्रधानों का क्रम लिखेंगे जिसमें जिज्ञासु गण देख सकें कि इन दोनों परंपराओं में एकता और भिन्नता कहाँ कहाँ है ।
वालभी युगप्रधान पट्टावली भगवान महावीर १. आर्य सुधर्मा
आर्य मंगू २. आर्य जंबू ४४ १६. आर्य धर्म । ३. आर्य प्रभव
__ आर्य भद्रगुप्त ४. आर्य शय्यंभव
आर्य वज्र ५. आर्य यशोभद्र ५० १९. आर्य रक्षित । ६. आर्य संभूतविजय- ८ २०. आर्य पुष्यमित्र ७. आर्य भद्रबाहु १४ २१. आर्य वज्रसेन ८. आर्य स्थूलभद्र
आर्य नागहस्ती ९. आर्य महागिरि
आर्य रेवति मित्र १०. आर्य सुहस्ती
२४. आर्य सिंहसूरि ११. आर्य गुणसुंदर ४४ २५. आर्य नागार्जुन १२. आर्य कालकाचार्य ४१ २६. आर्य भूतदिन्न । १३. आर्य स्कंदिलाचार्य ३८ २७. आर्य कालकाचार्य ११ १४. आर्य रेवतिमित्र ३६
९८१ उपर्युक्त पट्टावली के संबंध में हमें दो चार बातों का खुलासा करना जरूरी है, क्योंकि यह हमारी संशोधित पट्टावली है । प्रचलित अधिकतर पट्टावलियों में आर्य मंगु का नाम नहीं मिलता और आर्य धर्म का युगप्रधानत्व काल ४४ वर्ष प्रमाण लिखा जाता है, तब हमने इसमें मंगु और धर्म दोनों को स्वतंत्र युगप्रधान माना है और भद्रगुप्त का
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