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प्रयोग और परिणाम २१७
• कासंकसे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढो पुणो तं करेइ लोभं । (२ / १३४ )
कामासक्त पुरुष' यह मैंने किया और यह मैं करूंगा' - इस उधेड़बुन में रहता है । वह बहुतों को ठगता है । वह अपने ही कृत कार्यों से मूढ़ होकर काम - सामग्री पाने को पुनः ललचाता है ।
जे व्यक्ति किंकर्त्तव्यता ( अब यह करना है, अब यह करना है, इस चिंता ) से आकुल होता है, वह मूढ़ कहलाता है ।
मूढ़ व्यक्ति सुख का अर्थी होने पर भी दुःख पाता है । वह आकुलतावश शयनकाल में शयन, स्नान - काल में स्नान और भोजन-काल में भोजन नहीं कर पाता -
सोउं सोवणकाले, मज्जणकाले य मज्जिउं लोलो । जेमेउं च वराओ, जेमणकाले न चाएइ ॥
मूढ़ व्यक्ति स्वप्निल जीवन जीता है। वह काल्पनिक समस्याओं में इतना उलझ जाता है कि वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं दे पाता । एक भिखारी था । उसने एक दिन भैंस की रखवाली की। भैंस के मालिक ने प्रसन्न हो उसे दूध दिया । उसने दूध को जमा दही बना दिया । दही के पात्र को सिर पर रखकर चला । वह चलते-चलते सोचने लगा- 'इसे मथकर घी निकालूंगा । उसे बेचकर व्यापार करूंगा । व्यापार में पैसे कमाकर ब्याह करूंगा | फिर लड़का होगा। फिर मैं भैंस लाऊंगा। मेरी पत्नी बिलौनी करेगी । मैं उसे पानी लाने को कहूंगा। वह उठेगी नहीं, तब मैं क्रोध में आकर एड़ी के प्रहार से बिलौने को फोड़ डालूंगा । दही ढुल जाएगा ।' वह कल्पना में इतना तन्मय हो गया कि उसने ढुले हुए दही को सिर्फ साफ करने के लिए सिर पर से कपड़ा खींचा। सिर पर रखा हुआ दही का पात्र गिर गया । उसके स्वप्नों की सृष्टि विलीन हो गई ।
• संखाय पेसल धम्मं, दिट्ठिमं परिणिव्वुडे । (६/१०७)
दृष्टिमान् मनुष्य उत्तम धर्म को जानकर विषय और कषाय को शांत
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