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प्रयोग और परिणाम - २०३ २. तिर्यग् भित्ति-दर्शन, ३. भूगर्भ-दर्शन ।
आकाश-दर्शन के समय भगवान ऊर्ध्वलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । तिर्यग् भित्ति-दर्शन के समय वे मध्य-लोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । भूगर्भ-दर्शन के समय वे अधोलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । ध्यान-विचार में लोक-चिंतन को आलंबन बताया गया है । ऊर्ध्वलोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन उत्साह का आलंबन है । अधोलोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन पराक्रम का आलंबन है । तिर्यक्लोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन चेष्टा का आलंबन है । लोक-भावना में भी तीनों लोकों का चिंतन किया जाता है ।
• संधि विदित्ता इह मच्चिएहिं । (२/१२७)
पुरुष मरणधर्मा मनुष्य के शरीर की संधि को जानकर कामासक्ति से मुक्त हो ।
चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का तीसरा आलंबन है-संधिदर्शन-शरीर की संधियों (जोड़ों) का स्वरूप-दर्शन कर उसके यथार्थ रूप को समझना; शरीर अस्थियों का ढांचा-मात्र है; उसे देखकर उससे विरक्त होना । शरीर में एक सौ अस्सी संधियां मानी जाती हैं | चौदह महासंधियां हैं-तीन दाएं हाथ की संधियां-कंधा, कुहनी, पहुंचा । तीन बाएं हाथ की संधियां । तीन दाएं पैर की संधियां-कमर, घुटना, गुल्फ । तीन बाएं पैर की संधियां । एक गर्दन की संधि | एक कमर की संधि ।
. लोयं च पास विफंदमाणं । (४/३७) तू देख । यह लोक (शरीर) चारों ओर प्रकंपित हो रहा है । • जातिं च बुड्डिं च इहज्ज ! पासे । (३/२६) हे आर्य ! तू जन्म और वृद्धि को देख । ।
जन्म को देखना जन्म की शृंखला को देखना है । जो मन की गहराइयों में उतरकर जन्म को देखता है, वह देखते-देखते जाति-स्मृति को प्राप्त हो जाता
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